जीवन का इतवार।
आएगा तो लायेगा,
इक सुबह अंगड़ाइयां
देर तक यूँ ही पड़े
देखेंगे बुझते ख्वाब हम,
इक नींद,
जो है छिन गयी
हफ्ते के कारोबार में
इतवार में सुकून से
सोयेंगे चादर तान के।-
मुद्रा लेकर भगवान चले, श्रेयांश खड़े अवगाहन को,
नर नारी अनभिज्ञ रहे, नवधा भक्ति पडगाहन को,
7 माह 9 दिन बीते फिर राजन ने अक्षय दान किया,
ऋषभदेव जिनराज ने जब इक्षु रस का पान किया।-
जीवन की कच्ची नींदों में
इक ख्वाब छिटक कर आंखों से
पलकों पर आकर बैठ गया।
कल भी पलकों की कोरों से
छुप छुप कर झांका करती थी,
अब भी पलकों की सैया में
लेती हो अंगड़ाई प्रिये।-
जीवन की कच्ची नींदों में
इक ख्वाब छिटक कर आंखों से
पलकों पर आकर बैठ गया।
कल भी पलकों की कोरों से
छुप छुप कर झांका करती थी,
अब भी पलकों की सैया में
लेती हो अंगड़ाई प्रिये।-
गोपाचल गढ़ और गोपाचल नगर (ग्वालियर) दो भिन्न स्थल हैं, गढ़ के नीचे विशाल गोपाचल नगर बसा हुआ है। यह अत्यन्त विचित्र बात है कि गोपाचल गढ़ पर या गोपाचल नगर में आज कोई भी तोमरकालीन हिन्दू या जैन मंदिर अस्तित्व में नहीं है। जैन मन्दिरों का एक वर्ग गुहा मन्दिर अवश्य गोपाचल गढ़ पर बसा हुआ है तथापि अन्य सभी मन्दिर नष्ट कर दिये गये हैं। गोपाचल नगर के जैन मन्दिरों का वर्णन बाबर ने अपनी आत्मकथा में किया है, उसने लिखा है कि इन मन्दिरों में दो—दो और कुछ में तीन—तीन मंजिलें भी। प्रत्येक मंजिल प्राचीन प्रथा के अनुसार नीची नीची थी, कुछ मन्दिर मदरसों के समान थे। परन्तु प्रश्न उठता है कि वे अनेक मंजिलों के जैन मंदिर कहाँ गये?
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मोहम्मद गौस ने बाबर की मदद ग्वालियर किला जीतने में की थी इस कारण वह बाबर हुमायूँ और अकबर तीनो के शासनकाल मे महत्वपूर्ण पदों पर रहा। उसकी मृत्यु पर अकबर ने उनका भव्य स्मारक बनवाने की इच्छा व्यक्त की। स्मारक तुरंत तैयार नहीं हो सकता था। अतः उसके शव को एक भवन में जो अत्यंत कलापूर्ण था, दफना दिया।
यह भवन ग्वालियर का जैन मंदिर था तथा इसमें चंद्रप्रभु की मूर्ति विराजमान थी। चंद्रप्रभु के इस मंदिर की वेदियों एवं मूर्तियों को बाबर के सैनिकोंने पहले ही नष्ट कर दिया था। उसी जैन मंदिर को अकबर ने मोहम्मद गौस का मकबरा बना दिया।
कवि खड़्गराय ने इस विषय में लिखा है-
विधिना विधि ऐसी ढई, सोई भई जु आइ ।
चंद्र प्रभु के धौंहरे, रहे गौस सुख पाइ ॥-
जिंदगी से हैं शिकायतें , बेशक हो तुम ही जिंदगी मेरी..
शिकायत है ख्यालो से मुझे शायर बनाते हैं,
शिकायत ख्वाब से भी है, तुझे ही गुनगुनाते हैं।
शिकायत उम्र से मुझको, गुजारी जो तुम्हारे संग
शिकायत हिज़्र से भी है, जो काटी है तुम्हारे बिन
शिकायत है हवाओं से, तेरी खुशबू ले आती हैं,
शिकायत नींद से भी है, तेरे किस्से सुनाती है।
शिकायत है नज़ारों से जहां दो दिल मचलते थे,
तेरे होंठों से शबनम जब मेरे होठों में गिरते थे।
शिकायत है मुझे इनसे,
मैं जब सब याद करता हूँ, सभी को गुनगुनाता हूँ,
हसीं यादों के साये संग, जब इनके पास जाता हूँ,
तो बुत से क्यो खड़े हैं ये? मुझे क्या भूल जाते हैं?
कहो वो पल कभी जिनमे गवाही देने आए थे,
हमारी हर कहानी पर जो खुल कर मुस्कुराए थे,
उदासे से खड़े क्यों हैं? अजनबी बन गए क्यों हैं?
क्या तेरी ही तरह इनकी भी आंखें नम नहीं होती?
जिनके साथ यादो के हसीं लम्हे गुज़ारे थे,
क्या उनकी याद में इनकी जवानी कम नहीं होती?
शिकायत है मुझे इनसे,
शिकायत है मुझे खुद से, मैं खुद को भूल जाता हूं,
जिनके दिल नहीं होते, मैं उनसे रूठ जाता हूं...-
मेरे वालिद बडे खामोश रह्ते हैं...
बहुत ही चन्द लम्हे हैं कि उनसे बातें होती हो,
मैं जब कुछ अच्छा करता हूं,खुशी से उनका सीना फ़ूल जाता है
मगर मुझसे नही कह्ते...
मैं जब कुछ गलती करता हूं, बडे अफ़्सोस से उनकी निगाहें नीचे होती हैं
मगर मुझसे नही कहते...
मैं जब बीमार होता हूं, वो अपने आप को कमजोर पाते हैं
मगर मुझसे नही कहते...
मैं मां से बात करता हूं तो हर ऐक बात सुनते हैं
मगर मुझसे नही कह्ते...
बडी मासूम सी दुनिय सजा कर दी हमे उनने, जहां अहसास होते हैं
जिन्हे हम जान लेते हैं जिन्हे वो जान लेते हैं
कभी इतनी भी बातें हो नही पाती कि बेटे तुमको जन्मदिन मुबारक़ हो
या फ़िर मैं ये कह सकूं कि प्रणाम पापा मेरा जन्म दिन है,
मैं मां को बोल देता हूं कि पा को बोल देना तुम,
और उनका दिल खुशी से झूम उठता है
मगर मुझसे नही कह्ते ...
मेरे वालिद बडे खामोश रहते हैं...-
मैं ख्वाब की दुकान से
इक पाव इश्क़ ले उधार
इक लम्हा भर मिठास को
महसूस किया देर तक
अब हिज्र का पड़ाव ये
मधुमेह से तड़फ रहा
सिसक रही हैं धड़कने
दर्द के व्याज को
आंशुओं के मोल से
उम्र भर भरता रहा....-
आजकल पेड़ पर लदे बेर,
खुद ही मजबूरी में…
नीचे गिरने लगे हैं.
क्योंकि
बेर को भी पता है,
पत्थर मारने वाला बचपन
अब मोबाईल में व्यस्त है.
✍🏼अज्ञात-