कितने ही चेहरे और कितने ही मुखौटे हैं
ज़िन्दगी की इस जंग में
हम खुद ही सिकंदर और खुद ही पोरस हैं-
कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग- 2
सिंह सी गर्जन हुई तब झेलम की लहरों से।
पूरी झेलम गूंज उठी थी किलकारी के स्वरों से।।
जैसे कोई ताज सजी हो सिर मयूर कलंगी।
अंबर की आभा बनी जैसे इंद्रधनुष सतरंगी।।
पोरव राष्ट्र ने सुनी तब झूठी कहानी कानों में।
अनुसूया ने देहत्यागी है झेलम की गहराई में।।
पूरा पोरव शोक मग्न था यमदूत काल बनकर आया।
अनुसूया को खोकर बमनी ने फारस से हाथ मिलाया।।
फारस की काली करतुते थी आर्यावर्त पर भारी।
उसने अपनी छद्म दृष्टि मां के आंचल पर डारी।।
सौदागरी के माध्यम से जो भारत के दामन को खींचे।
उस डरायस के खूनी मनसुबे राजद्रोह गद्दारों ने सींचे।।-
सिकंदर ने किया अंभी को पराधीन और अब अगला लक्ष्य रखा पोरस ,
भेजा दूत कि करो मेरे संग बातचीत ,पढा संदेश पोरस ने और बोला ,हमे है तुम्हारी मित्रता स्वीकार पर रहना तुम झेलम के पार,
अरिहंत जैन-
जिसको हमने, समझा गौहर,
आख़िर वो इक, कंकर निकला!
जीत चला जो, सारी दुनिया,
पोरस नहीं, सिकंदर निकला!!-
इससे पहले यूनानी योद्धा ने बीज हिंसा का बोया
शक्ति मद में विश्व विजेता, बनने का ख़्वाब संजोया
तबाह करके अरब आज का, ईरान फतह कर डाला
अफ़ग़ान पार करके उसने सिंधु किनारे डेरा डाला
जब हिन्दू शेरो के हाथी, चिंघाड़े उस रण में
यूनानी घोड़ो का दल, हवा हुआ इक पल में
पोरस से टकराकर उसका, ठीक हुआ दिमाग शैतानी
जान बचाने तब काम आया, केवल सिंधु का पानी
विश्व जीतने निकली सेना, भारत वर्ष से लौट गयी
हिन्दू देश के शौर्य में एक नई कहानी जोड़ गयी।-
कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-5
पोरव की जनता के मन पर खुशहाली का आलम था।
उनका राजा इस धरा पर मर्यादा का आलिम था।।
उसकी खिदमत से भारत का सम्मान बढ़ा।
पोरस ने मातृ भूमि पर इतिहासों का विधान गढ़ा।।
जिसने पोरव की दीवारों पर नील रंग पुतवाया।
मां झेलम के आशीर्वाद से नील सदन कहलाया।।
नीले वस्त्र धारण करके नील वर्ण को अपनाया।
सत्य धर्म की संस्कृति का न्यायिक चक्र बनवाया।।
उत्तर की सीमा का प्रहरी ऊंचा गौर हिमालय था।
पश्चिम का रक्षा कवच पोरस का देवालय था।।
पोरस के भारत में देखो विश्वासों की ताकत थी।
जिस पर कोई आंख उठा ले भला किसकी हिमाकत थी।।-
मारवाड़ की सुखी धरा को
हमने रक्त से सिंचा था
ले तलवार हाथ में हमने
दुश्मन को ललकारा था
सोमनाथ को आया लूटने
उसको हमने रोका था
पुष्कर में गजनी सेना को
जमके धूल चटाया था
विश्व विजीत का सपना ले
सिकंदर भारत आया था
झेलम के मैदान पर
पोरस से घबराया था
वार किया बहुत ही भारी
सैनिक ने उसे बचाया था
एक वार से बचा सिकंदर
सैनिक ने प्राण गवाया था
भारत की ताकत रजवाड़े
मान धरा का रखना था
सिस दिए अपने वीरों ने
हमने रक्त से सींचा था-
कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-4
आर्यावर्त के सभी राज्य मिलकर के अखंड बने।
अखंडता के श्रृंगार से मां का वैभव प्रचंड बने।।
इसीलिए बस इसीलिए पुरुषोत्तम का जन्म हुआ ।
भारत मां के इस बेटे का पोरव में अभिषेक हुआ ।।
जैसे कोई गांडीव धारी देश धर्म का सृजन हो।
जैसे कोई भू लोक पर इंद्र राज का वर्धन हो।।
जैसे कोई राजवीर की सुरलोक में दावत है।
पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम का जीवन लक्ष्य भारत है।।
धरती का श्रृंगार ना छूटे मिटे न नभ की लाली।
जिस भारत के गौरव की पुरुराज करे रखवाली।।
उस भारतवर्ष की प्रतिष्ठा अंबर से विराट है।
रक्षक बनकर पोरस अब सम्राटों का सम्राट है।।-
कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग~7
(अंतिम अध्याय)
पोरस ने शत्रु चंगुल से भारत माँ की हिफाजत की।
किंतु उसकी किस्मत में विश्वासघात की आफत थी।।
जो अंतर्धा समर भूमि में सहस्त्र शत्रु पर टूट पड़ा।
उस वीर के मृत्युशोक से घड़ा अश्रु का फूट पड़ा।।
भारत माँ के इक रक्षक का परलोक ने हरण किया।
अखंड भारत के सपने का चाणक्य ने वरण किया।।
एक ऐसे शूरवीर की कहानी बताना लाजमी है।
इतिहासों के उज्ज्वल पन्ने फिर से लिखना लाजमी है।।
आजादी के अरमानों का निज गौरव से ध्यान रहे।
जिससे भारत में पैदा होने का हमें सदा अभिमान रहे।।
पोरस बनकर हम सब को अब सजग रहना चाहिए।
जब तक दुनिया में सूरज है ये भारत रहना चाहिए।।-