दुर्गा राम ' देशज '  
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Joined 2 August 2024


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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग~7
(अंतिम अध्याय)

पोरस ने शत्रु चंगुल से भारत माँ की हिफाजत की।
किंतु उसकी किस्मत में विश्वासघात की आफत थी।।
जो अंतर्धा समर भूमि में सहस्त्र शत्रु पर टूट पड़ा।
उस वीर के मृत्युशोक से घड़ा अश्रु का फूट पड़ा।।
भारत माँ के इक रक्षक का परलोक ने हरण किया।
अखंड भारत के सपने का चाणक्य ने वरण किया।।
एक ऐसे शूरवीर की कहानी बताना लाजमी है।
इतिहासों के उज्ज्वल पन्ने फिर से लिखना लाजमी है।।
आजादी के अरमानों का निज गौरव से ध्यान रहे।
जिससे भारत में पैदा होने का हमें सदा अभिमान रहे।।
पोरस बनकर हम सब को अब सजग रहना चाहिए।
जब तक दुनिया में सूरज है ये भारत रहना चाहिए।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की भाग-6
(झेलम का महा युद्ध)

एक यूनानी यौद्धा ने बीज हिंसा का बोया था।
शक्तिमद में विश्वविजेता बनने का ख्वाब संजोया था।।
तबाह करके अरब आज का ईरान फतह कर डाला।
अफगान पार करके उसने सिंधु किनारे डेरा डाला।।
जब हिंदू शेरों की हस्ती सेना चिंघाड़े इस रण में।
सिकंदर के घोड़ों का दल हवा हुआ इक पल में।।
पोरस की समसिरों ने मुकदर लिखा सिकंदर का।
सौ-सौ यवनियों पर भारी था एक-एक यौद्धा भारत का।।
झेलम के इस युद्ध में लाल हुआ तटनी का पानी।
पोरस से टकराकर उसका ठीक हुआ दिमाक शैतानी ।।
भारत के इतिहास में समर जो अमर कहानी जोड़ गया।
अरे संसार जीतकर आया था वो खाली हाथ लौट गया।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-3

बीस वर्षों तक संताप सहा था पोरव राजकुमार ने ।
औहदा खोकर के अपना त्याग किया संसार में।।
समय चक्र की धुरी का मार्ग एक अनौखा था।
फारसियों को मार भगाने का सुनहरा मौका था।।
पोरस के एक आह्वान पर जनता नें हुंकार भरी।
खड़ग-फ़रसा-चाकू-भाला संग सेना के साथ खड़ी।।
झेलम के तट पर जाकर फारसियों को ललकारा।
भारत माँ के दुश्मनों को इस धरती से दुत्कारा।।
शत्रुओं के चंगुल से स्वर्ण पंखों को मुक्त किया।
आर्यावर्त की पावन धरा को फिर से आहूत किया।।
उन लुटेरों के खूनी सपनों पर पोरस की तलवार चली।
माँ झेलम के समर घाट पर शत्रु दल की चिता जली ।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-1

भारत राष्ट्र बंटा हुआ था छोटे छोटे खंडों में।
इस धरा पर रिपु बने थे अपने अपने झंडों से ।।
एक प्रांत पोरव बमनी जंहा सम्राट हुआ था ।
तक्षशिला का गौरव हिंदकुश तक फैला था ।।
एक राष्ट्र का सपना देखा अनुसूया महारानी ने।
रिपु दमन करने चाहे अपनी प्रेम कहानी से ।।
ना मिटा बैर झेलम के लाल लड़ रहे थे।
इस शत्रुता में नागफनी के पौधे पनप रहे थे ।।
भारत पर टिकी थी फारस की खूनी आँखे ।
बमनी के घर से भी गद्दारी का दामन झांके ।।
अनुसूया थी गर्भवती झेलम ने आसरा दिया।
भारत के बेटे पोरस को अनुसूया ने जन्म दिया।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-5

पोरव की जनता के मन पर खुशहाली का आलम था।
उनका राजा इस धरा पर मर्यादा का आलिम था।।
उसकी खिदमत से भारत का सम्मान बढ़ा।
पोरस ने मातृ भूमि पर इतिहासों का विधान गढ़ा।।
जिसने पोरव की दीवारों पर नील रंग पुतवाया।
मां झेलम के आशीर्वाद से नील सदन कहलाया।।
नीले वस्त्र धारण करके नील वर्ण को अपनाया।
सत्य धर्म की संस्कृति का न्यायिक चक्र बनवाया।।
उत्तर की सीमा का प्रहरी ऊंचा गौर हिमालय था।
पश्चिम का रक्षा कवच पोरस का देवालय था।।
पोरस के भारत में देखो विश्वासों की ताकत थी।
जिस पर कोई आंख उठा ले भला किसकी हिमाकत थी।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग-4

आर्यावर्त के सभी राज्य मिलकर के अखंड बने।
अखंडता के श्रृंगार से मां का वैभव प्रचंड बने।।
इसीलिए बस इसीलिए पुरुषोत्तम का जन्म हुआ ।
भारत मां के इस बेटे का पोरव में अभिषेक हुआ ।।
जैसे कोई गांडीव धारी देश धर्म का सृजन हो।
जैसे कोई भू लोक पर इंद्र राज का वर्धन हो।।
जैसे कोई राजवीर की सुरलोक में दावत है।
पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम का जीवन लक्ष्य भारत है।।
धरती का श्रृंगार ना छूटे मिटे न नभ की लाली।
जिस भारत के गौरव की पुरुराज करे रखवाली।।
उस भारतवर्ष की प्रतिष्ठा अंबर से विराट है।
रक्षक बनकर पोरस अब सम्राटों का सम्राट है।।

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कहानी पोरव राष्ट्र की : भाग- 2

सिंह सी गर्जन हुई तब झेलम की लहरों से।
पूरी झेलम गूंज उठी थी किलकारी के स्वरों से।।
जैसे कोई ताज सजी हो सिर मयूर कलंगी।
अंबर की आभा बनी जैसे इंद्रधनुष सतरंगी।।
पोरव राष्ट्र ने सुनी तब झूठी कहानी कानों में।
अनुसूया ने देहत्यागी है झेलम की गहराई में।।
पूरा पोरव शोक मग्न था यमदूत काल बनकर आया।
अनुसूया को खोकर बमनी ने फारस से हाथ मिलाया।।
फारस की काली करतुते थी आर्यावर्त पर भारी।
उसने अपनी छद्म दृष्टि मां के आंचल पर डारी।।
सौदागरी के माध्यम से जो भारत के दामन को खींचे।
उस डरायस के खूनी मनसुबे राजद्रोह गद्दारों ने सींचे।।

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