विश्वजीत कुमार   (Son_of_Nirmala_Devi)
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Joined 7 May 2019


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Joined 7 May 2019

है नहीं प्रेम का रस मेरी कलम रूपी शब्दों में जब व्यंग्य की बयार बहती है
कुछ सच तो बहुत कुछ और सच दबी हुई बातों को मेरी भी कलम कहती है
कुछ समझ तो कुछ समझ से परे क्यों लोगो तब और जब लगती है
जब शब्द ही न मिले जवाब देने को बकवास कर के ही खुद को संतुष्ट करते है

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हां धोखा खाया हूं कई तफ़ा मैने
लेकिन गम ए शिकन का नाम नहीं
जिंदगी का रुतबा भी अलग थी मेरी
इतने होने के बाद अभी तक सुधरा मै भी नहीं

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रातें अंधेरी है ख्वाब उजारे की तलाश में भटक रहा है किन्हीं
कुछ दूर तलब ही सही लेकिन अंधेरे के साए से तो है दूर नहीं
कुछ मेहनत अभी बाकी है कुछ और हिम्मत की बारी है बाकी

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हां खड़ा था मैं उस मोड़ पर जहां मिले थे मुझे हजार लोग
कुछ अपने बने थे तो कुछ तो छोड़ गए थे प्रसर्ग रूपी मोड़ पर
दुविधा था मुझे जिंदगी के सितम का या सितम ही था दुविधा उस मोड़ पर
जहां खड़ा था सर्ग रूपी शब्द के अध्याय पर जिंदगी का

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गमें ए उल्फत हम लिखेंगे जुल्फत ए सितम हम लिखेंगे
रह गई हो कोई बाते बातों में अगर उसे बातों को हम लिखेंगे

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तेरे इश्क में हम भी क्या मशगूल हो गए है
देखते थे कभी जमाने को तब हम
अब हम भी तेरे इश्क में इश्कबाज हो गए है
क्या इश्क बाज हो गए है

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रूसबत ना कर इतनी कि दिलदार बस इतना होता है
जिंदगी तो एक अल्सफा मात्र भर है जितना सफर भर होता है
तू इतना घमंड क्यों ही करता है न जाने कब जिंदगी का अंत होता है

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रस की धारा नही है मेरी कलमो में निर्गुण इसलिए लिखता हूं
प्रेम रूपी लिखने की चाहत रूपी कल्पना नहीं होगी उसमे
इसलिए कलम प्यार पर व्यंग्य रूपी शब्द ही लिखते है
कुछ ख्वाहिशें नही रहा जिंदगी के सफर रूपी कहनी में
इसलिए नीरस रूपी विचार प्रकट करता है हरेक पल में

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बैठे है तब नदियां के यूं ही किनारे
जब उदास हो गया है मनवा प्यारे
याद तब ही नदी के किनारे मुझको आवे
जब परेशान हम खुद से खुद को पावे
इस जगत की यही रीति है कुछ ऐसा प्यारे
वरना कहां कहां किसी को है याद ऐसे ही आवे

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इश्क रूपी कलम की धार है कुछ बोलती है
जितनी जख्म है नहीं उतनी लयबद्ध कलम बोलती है
बयां करो अपनी शब्दों को या बयार करो अपनी जख्मों को
ये इश्क रूपी दो धारी तलवार है मेरे बातों को
बीत जाने दे कुछ या थोड़ा राब्त जाने दे इन रातों को

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