Ashish Rajput   (आशीष राजपूत)
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Just a writer who writes own feelings
Joined 17 February 2019


Just a writer who writes own feelings
Joined 17 February 2019
21 FEB AT 11:04

है सौम्य और नेक विचार अपने
दिल फिर भी कई यहाँ घायल पड़े हैं
तिनका मात्र हूँ मैं इस जगत में
फिर भी ऐरावत बन अवरोध खड़े हैं
कश्ती बीच धारा और मित्र पतवार नहीं है
जाना जिधर पवन भी उधर से चले हैं

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29 DEC 2024 AT 1:15

एक अरसे से किसी अपने से मुलाकात नहीं हुई,
सुरज वही, चाँद वही, पर वो रात नहीं हुई।
जो आँखें मुस्कुराकर मेरा हाल पूछती थीं,
वो नज़रें मिलीं पर वो बात नहीं हुई।

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22 DEC 2024 AT 16:35

~ कभी-कभी मुझे यह लगता है,
जीवन स्वयं में एक कविता है।
जहाँ हरदम प्रेम का बसंत नहीं,
कभी निष्ठुर शीत भी आता है।
~ सूरज की किरणें जो संग चलें,
रात का अंधकार भी बदलें।
नए सूर्य उदय की कामना लिए,
हर सांझ एक सपना ढलता है।
~ प्रेम से दूर था जो अकेला पथिक,
जब प्रेम उसे पास नजर आता है।
लक्ष्य की परछाईं जब दिखे दूर कहीं,
यात्रा का गीत फिर गुनगुनाता है।
~ यह यात्रा अनवरत, यह पथ अनंत,
कभी सहज, कभी दुर्गम कंत।
पर हर कदम पर यही सिखाता है,
जीवन स्वयं में एक कविता है।

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17 DEC 2024 AT 11:13

पर जनवरी है राह दिखाती,
नई उम्मीद जगाती मन में।
उन जैसा हो जाने की चाह,
खो जाने की इन क्षण में।

क्योंकि याद ही करते रहना,
केवल हमारा ही काम नहीं।
गर उनको समय का होश नहीं,
तो हमें भी आराम नहीं।

जनवरी से दिल से भेंट करें,
बसन्त का फिर इंतजार करें।
पर ये सच कभी न भूलें,
रिश्ते सदा दोतरफा झूलें।
कुछ धर्म तो होगा उनका भी,
है दायित्व बनता उनका भी।
अब क्यों हम ही उनको याद करें,
क्यों हम ही उनकी बात करें।

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17 DEC 2024 AT 11:12

कुछ धर्म तो होगा उनका भी,
है दायित्व बनता उनका भी।
क्यों हम ही उनको याद करें,
क्यों हम ही उनकी बात करें।

क्या वायदे केवल मेरे ही थे?
या तो अनुबंध ही भूल गए वो।
कुछ फर्ज तो उनके भी थे,
या अब बहुत ही दूर गए वो।

चलो, छोड़ो बीती बातों को,
जैसे जा चुका है नवम्बर।
हाँ, माना थोड़ा है सताता,
हर वर्ष हमको दिसम्बर।

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11 DEC 2024 AT 11:18

वो टूटा था प्रेम में मगर बतला न सका
उसे जरूरत है प्रेम की पर जतला न सका
भीतर से बिखरा मगर चुपचाप रहा वो
हर चुभन दिल की चुपचाप ही सहा वो

किसी ने आंसू बहाकर प्रेम पा लिया
सभी की नजरों में स्थान पा लिया
पर वो सिसकता रहा अपने अंदर ही
वेदना छिपा गया वो मन के अंदर ही

उसकी खामोशी कभी समझी न जा सकी
उसकी पंक्तियां ही उसकी आवाज बन सकी
वो खुलकर कभी किसी से कह न सका
किसी को भी कभी वेदना दिख न सकी

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28 OCT 2024 AT 22:40

होठों पर बेशक रोक हो यहाँ
आंखों पर भला प्रतिबंध कहाँ
दिल कहना जब चाहेगा कुछ
आंखें बयाँ सब कर देंगी वहाँ

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28 OCT 2024 AT 22:40

होठों पर बेशक रोक हो यहाँ
आंखों पर भला प्रतिबंध कहाँ
दिल कहना जब चाहेगा कुछ
आंखें बयाँ सब कर देंगी वहाँ

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31 JUL 2024 AT 17:38

पर वचन यह न हुआ पूर्ण
सीता को सुख न दे पाए
आत्मग्लानि से भरकर
राम जाने कैसे रह पाए
रोज शाम को नीर आंखों से
रुके बिना बहता होगा
राम प्रतिदिन किस्मत पर
अकेले में रोता होगा..
कौशल के राजमहल में
दिल कैसे लगता होगा?
जनकनन्दिनी बिन राम का
जीवन कैसे कटता होगा..?

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31 JUL 2024 AT 17:34

सीते... जब जीवन में फिर से
राजमहल का सुख आएगा
यह राम तुम्हारे जीवन से
कांटे दुख के सब हटाएगा
तुम बन महारानी कौशल की
जब सुख से वहाँ रहोगी
यह 'वचन' राम का वहाँ तुमको
सुख की कमी कोई न होगी

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