है सौम्य और नेक विचार अपने
दिल फिर भी कई यहाँ घायल पड़े हैं
तिनका मात्र हूँ मैं इस जगत में
फिर भी ऐरावत बन अवरोध खड़े हैं
कश्ती बीच धारा और मित्र पतवार नहीं है
जाना जिधर पवन भी उधर से चले हैं-
एक अरसे से किसी अपने से मुलाकात नहीं हुई,
सुरज वही, चाँद वही, पर वो रात नहीं हुई।
जो आँखें मुस्कुराकर मेरा हाल पूछती थीं,
वो नज़रें मिलीं पर वो बात नहीं हुई।-
~ कभी-कभी मुझे यह लगता है,
जीवन स्वयं में एक कविता है।
जहाँ हरदम प्रेम का बसंत नहीं,
कभी निष्ठुर शीत भी आता है।
~ सूरज की किरणें जो संग चलें,
रात का अंधकार भी बदलें।
नए सूर्य उदय की कामना लिए,
हर सांझ एक सपना ढलता है।
~ प्रेम से दूर था जो अकेला पथिक,
जब प्रेम उसे पास नजर आता है।
लक्ष्य की परछाईं जब दिखे दूर कहीं,
यात्रा का गीत फिर गुनगुनाता है।
~ यह यात्रा अनवरत, यह पथ अनंत,
कभी सहज, कभी दुर्गम कंत।
पर हर कदम पर यही सिखाता है,
जीवन स्वयं में एक कविता है।-
पर जनवरी है राह दिखाती,
नई उम्मीद जगाती मन में।
उन जैसा हो जाने की चाह,
खो जाने की इन क्षण में।
क्योंकि याद ही करते रहना,
केवल हमारा ही काम नहीं।
गर उनको समय का होश नहीं,
तो हमें भी आराम नहीं।
जनवरी से दिल से भेंट करें,
बसन्त का फिर इंतजार करें।
पर ये सच कभी न भूलें,
रिश्ते सदा दोतरफा झूलें।
कुछ धर्म तो होगा उनका भी,
है दायित्व बनता उनका भी।
अब क्यों हम ही उनको याद करें,
क्यों हम ही उनकी बात करें।-
कुछ धर्म तो होगा उनका भी,
है दायित्व बनता उनका भी।
क्यों हम ही उनको याद करें,
क्यों हम ही उनकी बात करें।
क्या वायदे केवल मेरे ही थे?
या तो अनुबंध ही भूल गए वो।
कुछ फर्ज तो उनके भी थे,
या अब बहुत ही दूर गए वो।
चलो, छोड़ो बीती बातों को,
जैसे जा चुका है नवम्बर।
हाँ, माना थोड़ा है सताता,
हर वर्ष हमको दिसम्बर।-
वो टूटा था प्रेम में मगर बतला न सका
उसे जरूरत है प्रेम की पर जतला न सका
भीतर से बिखरा मगर चुपचाप रहा वो
हर चुभन दिल की चुपचाप ही सहा वो
किसी ने आंसू बहाकर प्रेम पा लिया
सभी की नजरों में स्थान पा लिया
पर वो सिसकता रहा अपने अंदर ही
वेदना छिपा गया वो मन के अंदर ही
उसकी खामोशी कभी समझी न जा सकी
उसकी पंक्तियां ही उसकी आवाज बन सकी
वो खुलकर कभी किसी से कह न सका
किसी को भी कभी वेदना दिख न सकी-
होठों पर बेशक रोक हो यहाँ
आंखों पर भला प्रतिबंध कहाँ
दिल कहना जब चाहेगा कुछ
आंखें बयाँ सब कर देंगी वहाँ-
होठों पर बेशक रोक हो यहाँ
आंखों पर भला प्रतिबंध कहाँ
दिल कहना जब चाहेगा कुछ
आंखें बयाँ सब कर देंगी वहाँ-
पर वचन यह न हुआ पूर्ण
सीता को सुख न दे पाए
आत्मग्लानि से भरकर
राम जाने कैसे रह पाए
रोज शाम को नीर आंखों से
रुके बिना बहता होगा
राम प्रतिदिन किस्मत पर
अकेले में रोता होगा..
कौशल के राजमहल में
दिल कैसे लगता होगा?
जनकनन्दिनी बिन राम का
जीवन कैसे कटता होगा..?-
सीते... जब जीवन में फिर से
राजमहल का सुख आएगा
यह राम तुम्हारे जीवन से
कांटे दुख के सब हटाएगा
तुम बन महारानी कौशल की
जब सुख से वहाँ रहोगी
यह 'वचन' राम का वहाँ तुमको
सुख की कमी कोई न होगी-