तुमसे अब और दूर, नहीं रह पाया
तुम्हारी ही डगर देखो मैं, लौट आया
दौलत हो तुम मेरी, मैं तुम्हारा सरमाया
धड़कन से जुदा दिल, कब है जी पाया
ना दिन मैं चैन कभी, ना रात में सो पाया
अश्क़ों से कर ली यारी, मैं नहीं मुस्कुराया
मैंने उस एक शब से, कुछ पेट भर न खाया
कुछ खिला दो ना, वक़्त न करो और ज़ाया
हो गया है इल्म, तू है जिस्म मेरा, मैं तेरा साया
न जाने क्या लिखा लकीरो में, क्या चाहे ख़ुदाया
डूबा हूँ तुम में कुछ इस क़दर, मैं ना उबर पाया
जब से बिछड़ी हो तुम मुझसे, मैं 'मैं' ना रह पाया
तुम्हारी ही डगर देखो... मैं लौट आया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
इज्जत, मान-मर्यादा, तहजीब, प्रतिष्ठा
ये सब "ढोंग" है "भरे पेट का",
"भूखा पेट" ये सब क्या जाने वो तो
अपना पूरा जीवन "पेट" की
"आग बुझाने" में लगा देता है..!!
:--स्तुति-
प्राणिजगत में अंग भी मुखर हो उठते हैं। दाँत बजते हैं, हड्डी चटखती है, कान पटपटाते हैं, उँगलियाँ चटकती हैं या पुटुकती हैं, हाथों से ताली बजती है, उँगलियों से चुटकी, पद-चाप प्रसिद्ध ही है, पेट गुड़गुड़ाता है, हृदय धड़कता है, नाक घर्र-घर्र बजती है, कान सनसनाता है।
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आज नहीं मिला काम , कैसे कटेगी रात
सुबह से भूखे बच्चे की, कैसे कटेगी शाम
हम है उदास, कैसे बताऊं उनको ये उदासी
पूछे अनिल, कैसे काटे ये शाम की उदासी
कोई तो मिले काम कम से कम इस शाम
मेरे पेट की नहीं कोई बात बच्चे की भूख की है शाम
सून ले भगवान पेट की बात इस शाम
।। अनिल प्रयागराज वाला।।-
"इश्क और दुश्मनी"
से भी बड़ी एक आग होती है,
:--भुख की,पेट की...!!!!
(:--स्तुति)-
दिन भर इंसान पेट के लिये भागता है
और रात भर दिल के लिये जागता है-
जिसके घर में कभी नहीं रही
"रोटी" की किल्लत,
जिसे ये नहीं पता क्या होती है भुख ,
जिसका पेट हमेशा रहा भरा,
ऐसा इंसान दुनिया का सबसे ज्यादा
"संवेदनहीन प्राणी" है..!!!!
:--स्तुति
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गर ज़ख़्म छुपाने आते हैं
ग़म पेट भर खाने आते हैं
फिर एक कोरा काग़ज़ लें
देखो शब्द कैसे उभर आते हैं
सारा मसला ही दर्द का है मियाँ
बस यूँ ही हर्फ़ उकेरे जाते हैं-
# पेट पर लात #
अपने स्वार्थ की सिद्धि हेतु किसी के पेट पर लात मारना, गलत ही नहीं, वरन पाप भी है।-