भारतीय साहित्य में पशु
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खूबसूरत सी प्रकृति, पशु बने इंसान,
मर रहा भविष्य, जानवर बन गया इंसान।।-
बलात्कार को 'पाशविक' कहा जाता है, पर यह पशु की तौहीन है, पशु बलात्कार नहीं करते। सुअर तक नहीं करता, मगर आदमी करता है।
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मौसम-ए-मिजाज
अब गर्म हो चला है
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बेजुबान परिंदों को शायद
पानी की
जरूरत है-
इंसानियत को छोड़ो चलो आज मजहब बचाते है
हम कब तक इंसान रहेंगे चलो आज पशु बन जाते है-
मैं हूँ एक पशु दुर्दांत मगर स्वतन्त्र हूँ,
लाचार इक इंसान बंदी है भीतर मेरे।-
तमाशीन बन देखते रहे सभी
एंगल बदल-बदल फोटो खीचते रहे सभी
मेरे दर्द मेरी छटपटाहट को हास्य समझ
तालियां बजाते रहे सभी
मैं नन्हा जानवर
इंसानों से संवाद कर न सका
फिर इस तरह...
मेरे दुखों का अनुवाद हो न सका...-
जग में प्राणी सभी एक हैं,हम सब में समता दर्शायें।
पशुओं को दें अभय दान,मन में करुणा भाव जगाएं।।
परम पिता के सभी पुत्र हैं, सब को जीने का अधिकार।
सबको अपना जीवन प्यारा, कोई नहीं चाहे दुख भार।।
एकेन्द्रिय से पंचेेंद्रिय तक, दुख से डरें सुख आधार।
जीभ लोलुपी बने कभी ना,करें सभी जीवों से प्यार।।
निर्दोष पशुओं का कत्ल देख, अब धरती भी बिलख रही।
पशुओं की वीभत्स दशा लख, मानवता है सिसक रही।।
दीन दुखी जीवों पर अपनी, जो जन करुणा दर्शाते हैं।
निश्चित मानो निज जीवन में,पग पग पर सुख पाते हैं।।-
यूं ही
रात में
एक सुनसान गली में
एक लड़की मोड़ से मुड़ी और
एक पशु भी।
गली में कहीं-कहीं अंधेरा था
कहीं थोड़ी रोशनी।
तभी एक आदमी आया
लड़की रोशनी की तरफ भागी
और पशु अंधेरे की तरफ।-