"माँ"... बचपन में तू एक कहानी सुनाती थी...
एक लंबे बालों बाली परी
जिसके हाथ में एक सितारे बाली छड़ी थी
उसे घुमाते ही जो चाहिए मिल जाता था,
बड़ा हुआ.. तो पता चला वो छड़ी तो
तेरे ही हाथ थी "माँ"
औऱ "परी"...वो "परी" भी तू ही थी,
तब सीधे-सीधे क्यूँ नहीं कहा "माँ"
मांगने को.. ज़िन्दगी में टॉफी, चॉकलेट के सिवा
औऱ भी बहुत कुछ था,
ख़ासकर तेरा होना..;
काश...
तब तेरी जादुई छड़ी से
मैंने तुझे ही मांग लिया होता "माँ"-
तू पापा की परी ,
मैं माई का लाल प्रिये ..
खुद से ज्यादा रखूं मैं ,
तेरा ख़्याल प्रिये ..
कभी बिकता तो नही ,
तेरे इश्क में बिक जाऊं ..
बनू मैं तेरे खुशियों की ,
वो दुकान प्रिये ...
तेरे ग़मों को दूर करूँ,
लाऊं लबों पे मुस्कान प्रिये ...
मुझको ना भूलना कभी ,
करना इक एहसान प्रिये ।-
एक तो 'परियों सी खूबसूरती' 'अभि' ऊपर से ये 'मासूम सी नज़ाकत'।
क्या तारीफ़ करूँ उस 'हूर परी' की बस इतना जान लो क़यामत हैं क़यामत।-
जरूरी तो नहीं कि "पर" हों ही "परी" के,
६-गज की साड़ी से ज़्यादा ख़ूबसूरत क्या ही होगा..?-
मेरी जान कल रात मेरे सपने में आई तुम
मत पूछो कब क्या कुछ भी
बस जान लो मेरे ख़्वाबों की परी बन आई तुम
तुम्हारे खूबसूरत सी प्यारी दो नैन
जैसे मेरे ज़िन्दगी में रौनक भरने आइ तुम
कशिस यही थी बस तुम्हें कस कर गले लगा लूँ
फिर भी तुम्हें निहारता रहा इतनी हसीन शख्सियत बन आई तुम
जितनी सुंदर तुम हो उससे भी सुंदर तुम्हारा दिल
वाणी में मधुरता इतनी जैसे हर वाक्य में मीठी राग सुनाने आई तुम
शर्मा गई थी बातों ही बातों में फिर नज़रें नीची कर बहुत मुस्काई तुम
हाँ सचमुच मेरी जान कल ख्वाब में मेरे सपनों की परी बन आई तुम-
एक रोज झगड़ती थी खुद से
कुछ लम्हों की गुजारिश पर,
पर,सीख लिया है जीना खुद को
तन्हाइयों को भिगाती बारिश पर...!-
बिन कहे ही वो 'अभि' न जाने कैसे बहुत कुछ कह जाती हैं...
आसमान से उतरी हुई मासूम सी परी है वो हर बार अपनी दिलकश अदाओं से मेरा दिल खुश कर जाती है..-
नज़ाकत, उल्फ़त और शरारत का पैमाना है
वो नाज़नीं छलकता जाम, वही मयख़ाना है
कहने को, दिखने को है, वो भी आदमज़ाद
असल में परी, अप्सरा, ख़ुदा का नज़राना है
- साकेत गर्ग-
एक परी सी लड़की है मेरी निगाहों में
जो मेरे दिल को आती रास बहुत हैं।-