शायद मेरे शब्द ही होते हैं जहरीले
सफ़ेद कागज भी नीले पड़ जाते हैं-
और फिर एक रोज़ ... मिला मुझे ... नीला
और कुछ भी मिटाना मुश्किल हो गया
...
कितनी आसाँ थी ज़िंदगी पेंसिलों वाली
मिट जाते थे गहरे ज़ख़्म भी आहिस्ता आहिस्ता
©LightSoul-
कुछ अलग ही बात है
इस नीले रंग में,,
पता नहीं क्यों पर दे जाता है
ये मुझे उमंग एक नयी शुरुआत की...-
ये आसमां आज मेरे ज़हन के रंग से क्यूँ रंगा है?
इसकी भी थाल में किसी ने ज़िल्लत का ज़हर परोस दिया क्या?
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काले केश
नीले नयन
गुलाबी गाल
लाल लब
निकलता है
तेरी काया
का इंद्रधनुष जब
मौसम में
आद्रता
आ जाती है तब-
होठों से मुझको कर दो गुलाबी
आँखों से मुझको कर दो शराबी
रंगों से होली खेली है हमने
अंगों से खेलें तो क्या है खराबी
आज भी होती क्यों लाल पीली
पकड़ मेरी कर न पाओगी ढीली
सुराही सी गरदन को जो चूमा हमने
बिना विष के भी हो गयी क्यों नीली
चाहे तुम रूठो, चाहे तुम मारो
हया का पर्दा, नजर से उतारो
भिग जाओ ख़ुद भी, हमें भी भिगो दो
रंग अपना ऐसे अंगों से डारो
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सूरज बुझ गया रोशनी में,
कुछ दर्द नीली करने को..
मैं धूप चख कर आ गया,
फिर रात गीली करने को..-
आज बादल कुछ ऐसे दिखाई दे रहा
मानो जैसे चाँदी सी चीज में,
नीले रंग की चाँदर लपेटी गयी हो।
ये सुंदर सा आसमाँ में मेला सा लगा हो।
जिसमे घूमने के लिए मन विचलित हो उठा
जहाँ जाने के लिए पैर उड़ान भरने लगा,
पंछी की चाल के साथ, उड़ने के लिए।
पैर थिरकने का नाम ही नही ले रहा हो।
आँखे तो बस आसमाँ को, एक टक ही देख रही हो।
मानो जैसे वहाँ पहुँचने के बहुत इक्छुक हो।
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