QUOTES ON #नवाबों_का_शहर

#नवाबों_का_शहर quotes

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5 JAN 2021 AT 15:52

अंदाज़ नवाबी, अल्फ़ाजों में मोहब्बत,और
जिंदादिली में डूबा हुआ हर कतरा-ए-लहू है,
मुस्कुराइए जनाब ये "शहर-ए-लखनऊ" है।

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विकास में तत्पर लेकिन ,
अपने संस्कारों में रमा है लखनऊ ।
पुराने रीति रिवाजों वाला लेकिन
अब तक जवां है लखनऊ ।
जो महसूस करते हैं ज़िन्दगी की थकान खुद में
उनके लिए बेजोड़ दावा है लखनऊ ।
अन्जान शहर अंजान ही रहते हैं
आकर देखें अपना अपना-सा है लखनऊ ।
अदब और तहज़ीब की अपनी पहचान लिए
औरों से बिल्कुल जुदा- जुदा है लखनऊ ।
रूठे को मना ले , गम को भी खुशी कर दे
ऐसी आब-ओ-हवा है लखनऊ ।
मुस्कुराइये कि आप लखनऊ में हैं
ऐसा गुलिस्तां है लखनऊ ।
दिल बस जाए आपका यहीं पर
खुद में ऐसी अदा है लखनऊ ।
आकर तो देखो एक बार लखनऊ में
कह न उठो "वाह्ह , क्या खुदा है लखनऊ " ।

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4 NOV 2020 AT 15:44

नवाबों के शहर में🏡,
गरीबों की कुटिया कौन पूछता है😀😁,
🙏जनाब......।

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18 JUN 2019 AT 23:23

आज भी सीने में वही अदब-ओ-जज़्बात
और नवाबों सा अहसास रखती हूँ..
जहाँ कहीं भी रहू मैं
थोड़ा सा लखनऊ हमेशा अपने साथ रखती हूँ..★

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22 JUN 2020 AT 10:01

लखनवी अंदाज में तुमसे नजरे मिलाना है,
हम तो हर रोज कुछ बताते है,
आज तुम्हे बताना है!

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18 NOV 2021 AT 0:53

के वो जो लड़की अक्सर‌ संझाते में ही सो जाया करे थी...............
उसे भी रतजगी का मर्ज़ हो चला है तुम्हारे इश्क़ में, कि ख़ुदा ख़ैर करे,
नवाब साहिब!



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27 JAN 2020 AT 18:39

नवाबों के उस शहर सी क्या नज़ाकत कहीं देखे हो आप,
नफ़ासत के शहर लखनऊ की बात ही कुछ और है जनाब.

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16 JUL 2022 AT 15:49

हमारे इलाके में आग लगी हुई है और उस्ताद हैं कि नवाबों के शहर में पानी-पानी खेल रहे हैं|साहेब आपका हाल का लिखा क्योट पढ़ा|थोड़ा मायूस हुए|दरअसल आप जब भी ऐसी गंभीर बातें करते दिखते हैं तो थोङा शुबहा-सा होने लगता है आसू को कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके उस्ताद घर-बार छोड़कर कैलाश पर्वत पर तप करने हेतु प्रस्थान करने को उद्यत हैं!!ऐसा गज़ब हरगिज़ न कीजिएगा वरना लखनऊ वालों का मालूम नहीं मगर प्रयागराज के बाशिंदों का नाज़ुक दिल शीशे के मानिंद टूट ही जाएगा|कई रोज़ से सोच रहे थे कि हवा में सनसनी घोलते परिंदों के उस शहर में कि जहां मेरे उस्ताद गुस्ताखी की सज़ा फुरसत से लिखा करे हैं उस शहर की टुंडे कबाब वाली गली में लौटे हुए काफी अरसा गुज़र गया है|इसलिए आज पुनः आपकी उसी रियासत का रुख कर बैठे हैं|आज भी अपने उसूल पर कायम हूं उस्ताद,शुक्रिया अदा नहीं करूंगी|हां मगर जब भी आपसे बहस मुबाहिसे (कोलाब)का मौका मिलेगा तो मेरी कलम आपको बख्शेगी भी नहीं|अपनी रचनाओं की हरियरी को गंभीरता के लबादे से ढककर हम जैसे बीमार दिलों पर पत्थर न मारें|बारिश के मौसम में पानी की बूंदों के लिए तरसते हम नाशाद लोग उस्ताद की कलम के पुराने कलेवर से ही ठंडक पाएंगे|अन्यथा तो इस नामाकूल गर्मी से मर ही जाना है|असल जिंदगी में कम गंभीर मसले नहीं हैं कि यहां भी गंभीर हुआ जाय|इसे आसू की धमकी समझें और अपना अगला वार सोच समझकर ही करें🤷

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8 FEB 2021 AT 16:10

क्या कहा???भूल गए
ख़्वाब हो क्या
लखनऊ में रहते हो
तो
नवाब हो क्या।।।।।।

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8 SEP 2024 AT 20:54

पढ़े जाते हैं मीर- ओ- ग़ालिब, सुने जाते हैं 'ज़ौक़' भी ।
ये शहर-ए-'दाग़' है 'सागर','मोमिन' का क़रार है दिल्ली।।

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