QUOTES ON #दिवास्वप्न

#दिवास्वप्न quotes

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28 SEP 2018 AT 22:50

है दिवास्वप्न का प्रेमी मन
बुनता खुदमें ताने-बाने
कभी रोचक कभी मनमाने
विकट महत्वकांक्षी यह
कुशाग्र बुद्धि का धर्ता है
उलझ जाती गाँठ जो खुदमें
धर उधेड़ फिर बुनता है!
स्वर्ण सजीले सुंदर मोती
चुन-चुन ये पिरोता है
कस्तूरी मृग समान यह
अरण्य भर में फिरता है!
नवयुग का मानव देखो
सिर्फ दिवास्वप्न ही बुनता है!!!

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19 AUG AT 13:15

गुजर रहे हैं जमाने ज़ख्मों को सीते सीते
राहत ए सब्र न आया कभी अश्क पीते पीते

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27 JUL AT 14:45


अलसाये नयनों को खोले,मुग्ध हो रही वसुधा
सुधा जलबिंदु तृप्त धरा, अद्भुत नभ संपदा

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5 NOV 2020 AT 16:46

बचपन के दिवास्वप्नों में हमेंशा
मैंने अपनेआप को
स्नो व्हाइट के रूप में
विशाल जादुई महलों में
राज करते हुए पाया।
आजकल दिवास्वप्नों में
मैं एक छोटे से गांव के
ख़ूब घने वृक्ष के नीचे
छुट्टी वाले दिन, लेटे हुए
अपने लॉन्ग-डिस्टेंस प्रेमी से फ़ोन पर
अपनी प्रिय क़िताब के बारेमें
चर्चा करती हुई पाई जाती हूँ।
सचमुच! जीवन की वास्तविकता को
एक स्पष्ट दृष्टिकोण केवल
'परिपक्वता' ही दे सकती है।

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14 MAY 2019 AT 23:07

जब मेरे आँसुओं की परवाह नहीं तुमको
क्यूँ मेरी पसंद ना पसंद समेटे हो कह दो

कह दो कि दर्द देकर तुझको .. मुस्कुरा
सकता नहीं मैं ,,,,,,,,, हाँ कह दो .......

कह दो की सब मात्र आकर्षण था , था
जिसे माना प्रेम सा तुमने ... कह दो ....

ये अनउत्तरीत प्रश्न छोड़ चले यूँही जाऊँगा
ना दे पाऊँगा उत्तर तेरे प्रश्नों के ,, कह दो ..

कह दो दिवास्वप्न से तुम समाहित थे
मेरे मन में ,, टूट गया है जो स्वप्न कह दो

कह दो ,, कि पल- पल की हर आह नहीं
मेरे लिए , जो सुनते है ये कर्ण मेरे .. कह दो ..

कह दो दिल की धड़कन कहती है झूठ सा
काम है इनका धड़कने का महज़ ,, इन्हें महज़ धड़कने दो .....कह दो

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6 SEP 2020 AT 11:02

रहते है रतजगे रात भर
दिवास्वप्न में दिन मेरे
कहने को कहकहे है ,,
ऑंखें पीती अश्रु मेरे !!!!

कौन कहता की भूल बैठे
सोई-जागी अँखिया जब
सपने देखे तेरे ,,

अधरों पर सजा मुस्कान
नैनों में नीर की सरिता
समाए बैठे ,,

कुछ तो मनं इंतज़ाम कर
कि विरह पल कटे मेरे
कहकहे रहे बाक़ी और
आँखों से अश्रु छूटे मेरे ...!!!!

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जब बैठती हूँ , एकान्त में
उमड़-घुमड़ कर आ जाते हैं
मेरे सपनों के बादल ....
उन बादलों में संचित न जाने
कितनी अभिलाषाएं ,
कुछ ऊंद्यते दिवास्वप्न
जिन्हें विगत समय में
अपने शब्दों में उकेरे थे
जब बैठती हूँ , एकांत में ....
बिजली कौंधती है ,
अंधकार सदृश
छा जाता है स्वप्न गढ़ में
गरजते हैं मेद्य, कुछ अस्पष्ट
परछाईयां तैरने लगतीं हैं, आंखों के समक्ष ..
आलिंगन करती हूँ पुनः उन निर्माही बादलों से
वो सभी बादलों की तरह बरसते नहीं
चले जाते हैं बिन बरसे इसीतरह
असंतृप्त छोड़कर ,मेरी अभिलाषाओं को
जब बैठती हूँ , एकान्त में ....

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29 APR AT 15:08

....

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18 JUN 2020 AT 21:14

शोर मचाता रहता है दिल
तू भी कभी तो आकर मिल
तेरी याद की धड़कन ही अब
शोर मचाती आ मिल, मिल ,मिल .......
क्या मिलने की चाह नहीं है
या मेरी परवाह नहीं है?
दिन के उजाले शर्म जो आए
रातों में ही आकर मिल.......
क्यों तू भूला सारे वादे
संग जीने के सारे इरादे
दिवास्वप्न गर सच जो ना हो
सपनों में ही आकर मिल .......(शेष अनुशीर्षक में)

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14 MAR 2021 AT 14:46

झोप येत नाही आणि रात्र ती सरून जाते
जरा सांग ना तूझ्या आठवणींना
मला झोपू दे शांत
दिवस असतोच ना अख्खा
तूझे चित्र रंगवायला निवांत

छळू नका म्हणा जागे मी असतांना
स्वप्नातच या मी झोपेत असतांना

यायच असेल तर तूच येना
नको पाठवू आठवणींना

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