Amena Saiyed   (©Amena Saiyed)
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उलझे उलझे केश, जीवन सुलझनों से परे!
Joined 30 August 2019


उलझे उलझे केश, जीवन सुलझनों से परे!
Joined 30 August 2019
29 JAN 2021 AT 16:40

आईं बहारें फ़िर भी क्यों अब तक मुझे राहत नहीं
सब आए वो ना आए सेहतमंद अब तबियत नहीं

घटती हूँ ख़ुदमें बढ़ रहे वो मुझमें ज़्यादा आज कल
शामो सहर अब हर पहर उनसे मुझे फ़ुर्सत नहीं

जा के कहो उन लोगों को जो बेज़हन कहते मुझे
मसला है दिल का और तो कोई मिरी दिक्कत नहीं

वो हैं मुकम्मल सब ज़मीं औ आसमां लेकिन सुनो
दूँ रौशनी कैसे उन्हें मैं साथ ये क़िस्मत नहीं

अख़लाक़ हो या हो हुनर मैं कम नहीं जाना मगर
कैसे ख़ुशी दे दूँ मैं उनको चांद सी सूरत नहीं

इक शख़्स में दिखती है 'आमेना' मुझे दुनिया अभी
के बाद इसके ख़ास कोई दिल में अब हसरत नहीं

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4 DEC 2020 AT 13:12

ऊंचे लोगों को अक्सर ख़म के चलते देखा है
हाँ मैंने शीरीं फल को जड़ में पलते देखा है

कितनी भी लंबी या कितनी भी काली हो लेकिन
मैंने इन आंखों से हर शब को ढलते देखा है

गर आगे पतझड़ तो पीछे बारां आनी ही है
अब मैंने हर मौसम का हाल बदलते देखा है

संभल कर भी गिर जाते हैं यूँ कुछ गिरने वाले
पर मैंने गिर कर लोगों को संभलते देखा है

मसलें, तशवीशें, दुनिया के इन अंधेरों में भी
'आमेना' उम्मीदों की लौ को जलते देखा है

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26 NOV 2020 AT 13:55

दुःख होता है...
जब 'अस्थायी चीज़ें'
मेरे दिल में अपना
स्थायी घर कर जाती हैं!

(Full piece in caption)

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24 NOV 2020 AT 18:13

पायलों की अब खनक इतरा रही है
बारहा गज़लें अभी ये गा रही है

आज कल चंदा यहाँ रुकता बहुत है
ख़ामख़ा ये रात भी बहका रही है

नाम से उनके ही दिलकश सी फ़िज़ा ये
बेवजह अब क्यों मुझे बहला रही है

इस वबा से हूँ परेशां मैं अभी भी
वस्ल हम दोनों का ये अटका रही है

दिल के मौसम का न पूछो हाल ही तुम
बेवजह अश्कों की बारिश आ रही है

रातरानी खिल रही मेरे शहर में
हाँ महक फ़िर से तुम्हारी आ रही है

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5 NOV 2020 AT 16:46

बचपन के दिवास्वप्नों में हमेंशा
मैंने अपनेआप को
स्नो व्हाइट के रूप में
विशाल जादुई महलों में
राज करते हुए पाया।
आजकल दिवास्वप्नों में
मैं एक छोटे से गांव के
ख़ूब घने वृक्ष के नीचे
छुट्टी वाले दिन, लेटे हुए
अपने लॉन्ग-डिस्टेंस प्रेमी से फ़ोन पर
अपनी प्रिय क़िताब के बारेमें
चर्चा करती हुई पाई जाती हूँ।
सचमुच! जीवन की वास्तविकता को
एक स्पष्ट दृष्टिकोण केवल
'परिपक्वता' ही दे सकती है।

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23 OCT 2020 AT 15:28

लेक़िन सुनो!
तुम यक़ीनन बनना
वो 'पंछी',
जो उड़ जाता है बहुत दूर!

मग़र वो लौट आता है
अपनी सबसे ऊंची
उड़ान भरने के बाद,
एक दिन अपने ही नशेमन में।

(Full piece in caption)

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22 OCT 2020 AT 0:08

आंखों में नूर, रुख़सारों पे तबस्सुम हर पहर है
दिल में हमारे आपकी सोहबत का जब से असर है

शख्सियत उनकी शुकर, वफ़ादारी और सबर है
दोस्त ऐसा, दोस्ती निभाना जिनको बखूबी ख़बर है

मान लो कि दुनिया ये सारी एक घटादार शजर है
तो फ़िर उस शजर का ये सब से शीरीं समर है

खूबसूरत ज़ुबाँ औ दिल, चेहरा चौधवीं का क़मर है
उर्दू हो या हिन्दी, इनकी क़लम हूबहू चमकता बदर है

जिनके मरासिम काफ़िया, रदीफ़ औ मुक़म्मल बहर है
अमर-उजाला हो या सहित्यसुधा, इनका पर्चा अमर है

दोस्ती की मिसाल हैं, मुझ पे मेहरबानी इस क़दर है
बेख़बर मैं, मेरी हर मुश्किल का हल इनको ख़बर है

रौशन ख़यालात इनके ऐसे, कि तजल्लियों का घर है
बिल्कुल अपने तखल्लुस सी शख़्सियत 'ऋचा सहर' है

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19 OCT 2020 AT 13:09

परेशानियाँ, मायूसियाँ, मनमुटाव और
रंजिशें सभी रवाँ हो जाएंगी
ज़िंदगीको मुसाफ़िरखाना समझके जिओ
तशवीशें तुम्हारी फ़ना हो जाएंगी

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12 OCT 2020 AT 23:04

उनकी सताइश पर ख़ुदको राज़ी
तनक़ीद से ख़ुदको ग़मगीं करती हूँ
नाकारा हैं! घर के आईने सभी
इन दिनों, मैं लोगों पे यक़ीं करती हूँ

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10 OCT 2020 AT 23:07

I the crescent moon,
I cosmogyral to you;
oh my complete earth!

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