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🍁 FORTY SEVEN पहेलिकाव्य - 47🍁
🌺पहेलिकाव्य प्रतियोगिता -13🌺
"पौरुष गात्र सुरुपा अन्तः
मदन अनुग्रह नायक हंतः
मृत्यु पार्थ सुत, मणिपुर गेह
दुर्लभ 'चित्र' नहीं संदेह !!"
प्रतियोगिता के नियम नीचे caption में उल्लेखित हैं 👍इस पहेलिकाव्य का उत्तर comments में दें 👍
(पिछली पहेलिका - 46, "अश्वमुखन दे अश्विनी ........ परहित पिंजर दान", का उत्तर एवम् विश्लेषण कैप्शन में देखें )-
और कुछ ऐसे भी है,जो ,"दधीचि"कहे जाते
जला के खुद को,रौशन दुनिया को किये जाते है-
यू तो कितने हुए इस जहां अनेक,
पर वो महाऋषि हुए जिनके हृदय थे नेक।
अपनी हड्डी दान देकर दधीचि बने महान,
आज के युग मे ऐसे लोग मिलते है कहां।
जिन्होंने माना भोलेनाथ को अपना कुलदेवता,
दक्ष के सभा मे आने को भोलेनाथ को दिया नेवता।
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हे दधीचियों
कर स्मरण तुम्हें हे दधीचियों ,
है नमन तुम्हें हे दधीचियों।
करने आलोकित धर्म की ज्योति,
दी स्वेक्षा से हंसते हसंते।
अस्थि, रक्त और तन की आहूति।
कठोर तप और दृढ़ता से ,
जागृत होता ये आत्मबल ।
सनातन पथ पर चलने वाले ,
रखते है संकल्प अटल ।।
कोई समझौता ना उनके आगे ,
परम ईष्ट ही जिनकी पूंजी।
है भक्ति ही ,जिनकी शक्ति ,
और समर्पण मोक्ष की कुंजी ।
इस ऐतिहासिक बेला में ,
कर स्मरण तुम्हें हे दधीचियों।
है नमन तुम्हें हे दधीचियों ।।
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ब्राह्मण दीन हीन तो सुदामा
त्याग में दधीचि,
प्रतिशोध में चाणक्य,
दम्भ में रावण,
और रुद्र में परशुराम।।
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वृत्रासुर वध हेतु, वज्रअस्त्र को, हड्डियों के दानी,
महातपस्वी निःस्वार्थ परम दानी महर्षि दधीचि।-
मैं 'दधीची' हूं, पूछता ही नहीं,
देश से है या तू विदेश से है?
सारे इन्सान मेरे अपने हैं,
मेरा झगड़ा तो बस 'दिनेश' से है!
(दिनेश दधीचि)-