इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते
हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते-
गिरगिट बैठे सिंहासन पर
गधे लगाते तेल !
बीन बजाते बाज महोदय
मगर चलाते रेल !
ये देखो कुदरत का खेल...-
जिसके रोपण मात्र से
घर पावन हो जाता,
कहकर पुकारते
जिसे हम तुलसी माता ।
पावनी तुलसी से
महकता घर-आँगन सारा ,
अनेक औषधीय गुणों से
परिपूर्ण पुष्पसारा ।
पुष्प मंजरी अति कोमल
कृष्णजीवनी नंदिनी ,
वह घर स्वर्ग समान
जहां रोपित
विश्वपूजित वृंदावनी।-
मानस में एक प्रसंग आता है जब लखनलाल निषादराज गुह को उपदेश देते हैं, आइए आज उसी पर चर्चा
बोले लखन मधुर मृदु बानी । ज्ञान, बिराग, भगति रस सानी ।।-
गांव का बेटा हूँ साहब,
यहाँ गिफ्ट देने सैंटा नहीं आशीर्वाद देने संत आते हैं
इसीलिए हम तुलसी पूजन दिवस मनाते हैं
तुलसी पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
🙏प्रातःवंदन राधे राधे🙏-
तुलसी एक औरत नहीं प्रतिमूर्ति है सौभाग्य की।
स्नेह माता तुल्य है ये जननी है नव अनुराग की।
दूर रखती संकटों से हर रोग का करती निवारण।
हरिचरण में मग्न रहती परमार्थ का ये है उदाहरण।
पवित्रता तुलसी दल की है एकदम गंगाजल सऱीखी।
मान्यता हर घर में है प्रकृति की है ये रचना अनोखी।
जो कंठ में धारण करे फिर हो कृपा जगदीश की।
फिर बहें आंगन में उसके धारायें नव आशीष की।
प्रधुम्न प्रकाश शुक्ला
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एक लम्हा, एक पल दे जा मुझे
उतार कर अपना कल दे जा मुझे
आने वाला है मौसम गुलाबों का
तू अपने होठों के कमल दे जा मुझे
बरसा ले अमृत जिस पर है बरसाना
कंठ में जो तेरे गरल दे जा मुझे
कौन जाने मृत्यु कितने कदमों पर
जाते जाते तुलसी दल दे जा मुझे-
मैं तुलसी तेरे आँगन की
मैं तेरा क्या ले जाऊँगी
कुछ ना कुछ तोहे दे जाऊँगी
प्यास मैं तेरे अशुवन की-
माँ सुबह उठ झाड़ू लगाती है।
लड्डू गोपाल को निहलती है।
श्रृंगार करके फिर भोग लगाती है।
तुलसी को जल चढ़ाती है।।
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तुलसी एक औरत
जिसे पहनाते सब लाल चुनर
तुलसी एक पौधा
जो पाता सब पौधों सें ऊचाँ रूतबा
करते है सब इसको जल अर्पण
करते है सब इसका पुजन
मेरे अंगना हरे भरे
जब तुलसी मेरे अंगना खिले
करती तू रोग छू मंतर
है तू बड़ी गुणकारी बूटी
देती तू सबको नवजीवन
करे जब कोई तेरी देखरेख जमकर
तुलसी एक औरत
Kavita sanghvi ( porwal )
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