जमीं से रिश्ता तुड़वा कर, चांद से रिश्ता ढुंढता है।
यें जो विज्ञान है ना, इंसान को बड़ा ठगता है।-
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
चंदन काठ के बनल खटोला, ता पर दुलहिन सूतल हो
उठो सखी री माँग संवारो, दुलहा मो से रूठल हो
आये जमराजा पलंग चढ़ि बैठा, नैनन अँसुवा टूटल हो
चार जने मिल खाट उठाइन, चहुँ दिसि धूँ-धूँ उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता छूटल हो-
ठग लिया उसने मुझे,
अपनी मीठी बातों से,
दिल में रहने आया था,
मेरे रोम रोम में बस गया ।-
ठग लिया आज फिर
उसकी आँखों ने मुझे,
बोली कुछ नहीं
फिर भी सब कुछ कह दिया मुझे ,
सोचता रहा...
उससे कितना हिसाब करना था मुझे,
जाने कहाँ गुम था...
क्या हो गया था मुझे
- साकेत गर्ग-
धैर्य करू कब तक नाथ
अब न मुझे तुम ठग पाओगे
ना देर करो मेरे स्वामी वर्ना
शून्य कुटी ही तुम पाओगे
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बहुत सस्ते में ठग लिए जाते है वह लोग
जो दिमाग से नहीं दिल से रिश्ता बनाते है-
कोई लुटेरा था या ठग था वो
सौदा जज्बातों का कर गया
दिल लेकर दर्द-ए -जुदाई नाम कर गया
कहते हैं लोग सादा दिल था वो-