सुबह की सुरीली रोशनी आयी है मीठी यादो के साथ
हर तरफ खुशबू फैलाये आयी है हल्की बरसातों के साथ,
मिट्टी की ताजगी लिए आई है नए सपनो के साथ,
नया जोश नई लगान आई है नई उम्मीद के साथ।
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"जोश और हौसलो को मिलवाया जाएगा तो मजिंल इतनी भी दूर नही होगी "
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अब जरूरी हो गया है
अकड़ तोड़ी जाए,
उन मंजिलों की,
जिन्हे अपने ऊंचे होने पर गुरूर है।-
यौद्धा
हौसला भी देखा था और जोश भी देखा था ,
भुजाओं का बल भी देखा था होश भी देखा था|-
इंसान जितना संभल कर बारिश में कदम रखता
उतना संभल कर जिन्दगी में रखें तो गलती की कभी गुंजाइश ही ना रहे...!!-
हाथों की लकीरों में मैंने सनम दिल के ख़ून से तेरा नाम लिखा है।
आजा कि मुद्दतों के इंतज़ार के साथ मैंने इश्क़ का सलाम लिखा है।
कोई पढ़ ना पाए अपनी भड़कीली ज़हरीली गंदी आँखों से कभी भी।
मैंने अपनी रुह की गहराई में जाकर के गहरा सा तेरा नाम लिखा है।
किसी को धन मिला, किसी ने दौलत ले ली तो कोई शोहरत पे निसार।
मैंने अपने हिस्से में "जाना" तेरी यादों में डूबी सुबह-ओ-शाम लिखा है।
वो आकर के मुझको इश्क़ के हश्र से डरा रहे थे कि फ़ना हो जाओगे।
मैंने उनके जाते-जाते, अपने लिए इश्क़ का सबसे बुरा अंज़ाम लिखा है।
सुनो! जो डराना ही है हमको तो ना कोई बहुत बड़ा सा डर दिखाया करो।
कि जिससे एक नहीं कई बार रू-ब-रू हो चुके हैं क्यों वहीं काम लिखा है।
कि वो लोग जो आए थे हमारी ज़िंदगी बद से बद्दतर करने के लिए यारों।
सुना है और ख़बर भी मिली है कि उन्होंने हमको बंदा बेलगाम लिखा है।
अरे हम तो अपनी ही धुन में रहने वाले मस्त मौला से मुसाफ़िर है राही।
हमने तो अपने ख़ून का आखिरी कतरा भी नाम-ए-हिंद-ए-आवाम लिखा है।
कि आख़िर में वो मिली तो अब ज़िंदगी थोड़ी सी मुस्कराने लगी "अभि"।
वरना तो इन बहन के भाइयों ने अपनी तफ़्तीश में हमारा काम तमाम लिखा है।-
शुक्र है हम बढ़ते जा रहे हैं, शुक्र है हम बढ़ते जा रहे हैं।
जिनको खटकते थे, उनकी नज़रों में चढ़ते जा रहे हैं।
जो अपने थे वो तो आज भी हमारे अपने ही है 'अभि',
बस जो पराए हैं वो दहलीज़ से दूर खिसकते जा रहे हैं।
कोशिश तो बहुत की थी उस बज्जात मुद्दई ने नोंचकर
फेंक देने की मुझको, लेकिन हम फूल-ओ-चिलमन से
है, मुर्शिद वक़्त-दर-वक़्त सजते-ओ-संवरते जा रहे हैं।
जो हार मान ले वो कोई और होगा 'मैं' नहीं हो सकता,
जहां को इस तरन्नुम से तकलीफ़ थी इस इंकलाब का
सब के सीने में दाख़िल किए जा रहे हैं, बे-फ़ायदा ही
जी हैं ज़िंदगी हमने, साक़ी बे-फ़ायदा ही जिए जा रहे हैं।
शुक्र है हम बढ़ते जा रहे हैं, शुक्र है हम बढ़ते जा रहे हैं।
जिनको खटकते थे, उनकी नज़रों में और चढ़ते जा रहे हैं।
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नेताओं के जोशीले भाषण सुनकर आता जोश में।
इस बीच जब पत्नी पुकारे, आ जाता फिर होश में।-
अलविदा मत कहो, अक्सर फिर मिलेंगे की आदत होनी चाहिए।
चाहे कैसी भी खटास हो "सुलझाव" की "उम्मीद" होनी चाहिए।
जिस एक लम्हें में आप अपने सारे "गिले-शिकवे" भूल सकते हो।
हमारे "जीवन के हरेक लम्हें" में एक ऐसी स्थिति होनी चाहिए।
कोई ग़लत करें या सही उसका किरदार समझकर भूल जाओ।
अगर आगे बढ़ना है तो मन में क्षमा की मनस्थिति होनी चाहिए।
हर दिन मुमकिन न हो तो साल में कम से कम एक बार ही सही।
परिवार के सभी बड़े और छोटे सदस्यों की बैठकी होनी चाहिए।
ग़लत को जो ग़लत और सही को बेझिझक सही कह सके मुर्शद।
मेरे हिसाब से एक जीवित इंसान में इतनी तो शक्ति होनी चाहिए।
लाख पत्थर कर लो दिल-ओ-दिमाग़ को तुम अपने ओ मेरे यारा।
बस किसी मज़लूम के दर्द से जो आए आँखों में नमी होनी चाहिए।
जन्म देने वाले माता-पिता के लिए जो स्वर्ग भी त्याग दें "अभि"।
कि मेरे हिसाब से "एक सुपुत्र में" इतनी तो "भक्ति" होनी चाहिए।-