तुम ज़रा अपनी खूबियों में झाँककर तो देखो
घर से निकलकर राहों में घर बनाकर तो देखो
आजकल नहीं होते हैं रोशनदान मकानों में
तुम बाहर निकलकर धूप में तपकर तो देखो
शहर में बहुत लगे पड़े है पत्थरों के ढेर
किसी को फुरसत से तराशकर तो देखो
मत करो कुछ मिलने का इंतजार ज़िंदगी में
जो हैं पास उसी से खुद को सजाकर तो देखो
कौन कहता है तुम काबिल नहीं कुछ करने के
अपने अंदर एक जुनूनी आग जलाकर तो देखो-
जुनून, शौक़, तलब, ख़्वाहिश, सुकूँ, क़रार बन जाऊँगा,
तू इक कहानी तो बन, मैं कोई भी किरदार बन जाऊँगा!-
रास्ते खुद ही बनाए उस शख़्स ने
जिसमें जुनून था
जीत की जलन तो देखो
पड़ोसियों को ना सुकून था-
हौसलें की शाख़ पर, ख़्वाब एक मेला है
फूल सब जुनून के है,चाँद भी अकेला है-
ज़ुनून का तेल डाल ,आग की लपटें उठा।
बन मशाल अपने दम पर ,तम को मिटा।
अपने भीतर की ,उस प्रसुप्त शक्ति को जगा।
बन चैतन्य ,आलस अकर्मठता को दूर भगा।
दबी हुई चिंगारी को ,धधकती हुई ज्वाला बना।
ला कुछ परिवर्तन तू भी ,एक नया इतिहास बना।
कर पल-पल का सदुपयोग ,फैला दो जहाँ में रोशनी।
सुकर्मों की ख़ुशबू से , बन जाये कोई अमर कहानी।
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अल्फाज़ यू बहते हैं रगों में जेसे कि खून बहता है
ए दोस्त ये लिखने का भी अपना ही जुनून रहता है।
के अब कहीं और क्या जाओगे ढूंढने को इसे बाहर,
महसूस करो कभी,एक नज़्म में जो सुकून रहता है।-
इश्क वो सुकून है,
जो जुनून से नही मिलता ।।
वो चाहत है,
जो इबादत से नही मिलता ।।
कहते है ये अफसाने तो दिलो से मिलते है,
वरना माँगने से तो खुदा नही मिलता...-
जुनून का तेल डाल , आग की लपटें उठा
लोगों की परवाह छोड़ के तू सिर्फ अपना हौसला बढ़ा
ये दुनिया खुद तेरे पीछे आएगी तू मन्जिल की ओर कदम तो बढ़ा
लोग तो हँसते ही रहेंगे लोगों की छोड़ तू अपनी बात सबको बता
कब तक पीछे भागोगे लोगों के अब तू आगे निकल के दिखा
वक्त भी तुझें सलाम करेगा लोगों को वक्त की अहमियत तो बता
चल उठ फिर सोचने विचारने में तू अपना वक्त न गवाह
लोग तेरे सामने सर झुकायेंगे तू इस काबिल लोगों को बनके दिखा
हाँ जुनून का तेल डाल, आग की लपटें उठा
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अँधेरा, रौशनी के जूनून से जल रहा है,
और एक चिराग़ है कि सुकून से जल रहा है!
रगों में जिसकी है पानी की रवानी “राज”
वही शख़्स मेरे उबलते ख़ून से जल रहा है!
_राज सोनी-