आमों में खिल आये बौर,कोयल गाती गाना।
मुझको भी अच्छा लगता है, ऋतु बसंत का आना।
खेतों में मुस्काती सरसों, कितना सुंदर पीला रंग।
रंग बिरंगे फूल खिले हैं, पत्तों का भी निखरा रंग।
दूर खड़ा मुस्काता सेमल, साथ निभाता टेसू लाल।
भौंरे तितली झूम रहे हैं, अलसी ने भी किया कमाल।
हरी भरी ये धरती माता,मौसम लगता प्यारा।
छोड़ रजाई हम खेलेंगे,अब ठंड भी हमसे हारा।
अगर ना खिलते फूल यहाँ,कोयल ना गाती गाना।
जान नहीं पाते हम बच्चे, ऋतु बसंत का आना।
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FROM CHHATTISGARH
जमाने की सारी दौलत एक तरफ,
तेरी बाँहों में जीने का सुख
सारी दौलत से बढ़कर,
मुझे जन्नत का रास्ता नहीं पता,
मग़र मेरे सुकून और खुशियों का
हर एक रास्ता,
सिर्फ़ तुम्हारी तरफ।
सारी सुविधाएँ ज़िंदगी की एक तरफ,
अनमोल है सनम मेरे लिए,
तुम्हारे साथ गुजारे हर एक पल।
ये ज़िंदगी मेरी साँस लेती है,
तुम्हारे साथ,
तुम हो मेरा आज और
तुम्हीं मेरा कल।
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क्या उलझना उन बातों में,
छूट गई जो पीछे बात।
मुस्कुराती सुबह के संग,
चलो करे अब नई शुरुआत।-
जीवन पथ पर हाथ थामकर,
चलने की चाहत रही अधूरी।
ना जाने कैसे आ गई
बीच हमारे इतनी दूरी।
ना मिला कभी सुकून मन को,
ना काँधे पर सिर रखने का सुख।
जी न पायी खुशियों के पल,
ना बाँट पायी अपना दुख।
जब ना हो कोई साथी अपना,
आँसू ठहर जाते कोरों पर।
खुद को ही समझाया मैंने,
तुम्हें हमेशा व्यस्त देखकर।
पढ़ना चाहती हूँ संग तुम्हारे,
जीवन के हर एक पन्ने।
दो किनारों पर बिखरी जिंदगी,
चल रहे हैं अनमने।
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दिनकर की रश्मियाँ,
जब वायु परतों को
चीरती हुई
थिरकेंगी अपनी गति ताल में।
छँट जायेंगे धुंध सारे।
गुनगुनी धूप के स्पर्श से,
पुलक उठेगी धरती
प्रकृति का कण कण,
बाँहें पसारे
उन किरणों को भर लेगा
अपने आगोश में
खिल उठेंगे फूल
महक उठेगी जिंदगी फिर से,
छँट जायेंगे धुंध सारे।-
लावणी छन्द
विषय - छेरछेरा
पूस महीना पुन्नी के दिन, परब छेरछेरा आथे।
बड़े बिहनिया झोला धरके, लइका मन घर घर जाथे।।
छेरिक छेरा छेर मरकनिन, जुरमिल जम्मो झन गाथे।
आज जाय नइ कोनो खाली, पावत ले बड़ चिल्लाथे।।
धान मुठा अउ ठोम्हा भर भर, पा के गदगद हो जाथे।
पाय धान ला फेर बेच के, खई खजानी सब खाथे।।
दान करे मा बड़ सुख मिलथे, धार मया के बोहाथे।
नइ होवय गा कोठी खाली, घर मा खुशहाली आथे।।-
जब बेगाने लगने लगे लोग,
अकेलापन भाने लगे दिल को।
इंतजार के लम्हें हो गए भारी,
खुद ही बहलाने लगे दिल को।
कब तक बहाएँ अनमोल मोती
जख्मों पे मलहम लगाने लगे।
सीख लिया अकेले वक़्त काटना
इसे अपनी आदत बनाने लगे।
खुशियाँ दगा दे जाती है अक्सर,
दर्द में भी अब मुस्कुराने लगे।-
तुम्हारे ख्यालों में गुजर गया दिन आज फिर।
उतर आई शाम उदासी लेकर आंगन में आज फिर।
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तुम्हारा हाथ थामकर चलने की चाहत,रह गई अधूरी।
चलते चलते तुम बना लिए, मुझसे मीलों की दूरी।-
जिंदगी की उधेड़बुन में हम खुद को भूलते गए।
ख़्वाहिशों की चादर पर पैबंद कई बनते गए।-