'जाकी रही भावना जैसी'
आज पढ़ेंगे जब साहिर लुधियानवी और शकील बदायुनी में 'ताजमहल' को लेकर ठन गई-
'जाकी रही भावना जैसी'
आज बात बिरह के साहित्य पर
नागिन बैठी राह में, बिरहन पहुँची आय
नागिन डर पीछे भई, कहीं बिरहन डस न जाय-
बिना बदरा के बिजुरिया कैसे चमके
कैसे चमके? कोई पूछे रे हमसे
बैठे हों जब मीठे सपने सजाई के
ऐसे में हौले से पास कभी आई के
जो बिछवा बजाई दे गोरी छम से
कसम से!
बिना बदरा के बिजुरिया ऐसे चमके-
"बिजलियां जो ये ओट ले रही हैं बादलों की काले
हैरान हैं ये आँखों को तेरी मशाल बनता देख"
कवि : गरिमा शर्मा-
'YQ Sahitya' ने न जाने कितनी किताबों में अपनी आँखे टिकाई होगी?
तभी तो आँखों पर लिखी हुई कई लेखको की यह उम्दा पोस्ट बनाई होगी!!
YQ साहित्य की पूरी पोस्ट का आनंद अनुशीर्षक (Caption) में पढ़कर लें--
माना दुनिया वाले कहते हैं,
इसे प्यार की एक निशानी।
पर ये कैसे हो सकती है,
बताना प्यार की ही निशानी।
जिसने ले ली निर्दोष बाल,
युवा और वृद्धों की कुर्बानी।
कटवाएं हाथ वो इंसान था,
या था कोई नरभक्षी प्राणी।
-
नागिन बैठी राह में, बिरहन पहुँची आय,
नागिन डर पीछे भई, कहीं वो बिरहन हो न जाय..!-