जनता जनार्दन वो शक्ति है
चाहे तो इतिहास रचा दें, और
नहीं चाहे तो रचे हुए इतिहास
को अपनी शक्तियों से हमेशा
के लिए गिरा और मिटा दें।।
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उसका रूप इतना सुंदर
के धारण करने
उसकी छबि चांद
भी बन जाए दर्पन
जिसके प्रति राधा का है समर्पण
वो है मेरे कृष्ण जनार्दन-
श्री कृष्ण
बहुत से चमत्कार किए
अपने दर्शन सबको दिए
सबके मन में उनका वास
ढूंढो उनको
अपने पास
देवकी नंदन कहलाते
सबके मन को भाते
धर्म के रक्षक हैं
वो मेरे प्रभु श्री कृष्ण है-
हे जनार्दन, हे माधव, हे मोहन,
किस मंझधार में छोड़ दिया आपने l
प्रबल आवेग है, जीने की तृष्णा नहीं मुझमे l
निकल जाऊँ भी जीने योग्य शक्ति नहीं मुझमे l
हे मोहन हृदय गति अब शून्य हो रही मुझमे l
जीवन है वाकी अभी पर जीवन नही मुझमे l
कई थे, कई है जहाँ में, अब क्या है मुझमे ?
क्यों भेजा मुझे जहाँ में, जहाँ, जहाँ नहीं मुझमे ?
ज़द नहीं कही कोई, पर कई ज़द है मुझमे l
मुस्कराता हूँ मैं, पर मुस्कान नहीं है मुझमे l
भँवर से डरता नहीं हूँ मैं, पर भय है मुझमे l
श्रम नहीं चाहा मैं, पर श्रम की चाह है मुझमे l
हे जनार्दन, हे माधव, हे मोहन,
दूर करो करवर आपत्ति नहीं मुझे जिसमें l
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वो कल भी पिसती थी,
वो आज भी पिस रही है,
सुना है, वो 'जनता' है,
वो "जनार्दन" की तलाश में,
आज भी भटक रही है।-
जनता जनार्दन
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जनता जनार्दन है, जनता का मर्दन है,
जनता से सृजन है, ताकत बचाइये।
जन हित होता बड़ा, गर्त में वो है पड़ा,
लालच में नेता खड़ा,नोटा को दबाइये।
है दंभ में राजा बड़ा,जनता को देता सजा,
है मौज मस्ती में पड़ा,दंभ को भगाइये।
भुखमरी होती सजा,सड़क पे नंगा खड़ा,
तड़पता कराहता ,नंगे को बचाइये।
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