कृष्ण की जो प्रीत है
कृष्ण जिसका संगीत है
नाम लिया जिसका कृष्ण से पहले
तो कृष्ण भी उसके सामने हारे है
समर्पण की परिकाष्ठा है जो
जिनके बिन कृष्ण है अधूरे
वो तो है राधारानी
जो कृष्ण को पूरा करे
प्रेम से बोलो राधे राधे
राधाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ-
प्यारी सी नोक झोंक का है ये बंधन
उल जलुल नामो से पुकारने का है ये बंधन
माँ की फटकार से एक दूजे को बचाने का है ये बंधन
कृष्ण बन करोगे हर पल मेरी रक्षा
एैसा है हमारा ये रक्षा बंधन-
श्याम तेरी बनसी तो सदा
राधा नाम ही पुकारती है
लेकीन तेरी याद मे
मीरा भी यहा तडपती है
एक नज़र उठा कर
उसे भी देख लीया करो-
जगत मे फीकी है हर आराधना
बस राधाकृष्ण को ही है साधना
जीवन रूपी अंग पर
चढ़े राधाकृष्ण का परिधान
किसी को नही अब पडना आन
एक कृष्ण ही है तारणहार
बंद कर लू सारे जगत के नयन
प्रप्त जो हुई दृष्टी श्याम घन
जगत मे कुछ ना आये रास
मनको जो भाया है प्रेम रास
भुज गई है सारी तृष्णा
बाकी है तो बस राधाकृष्णा
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राधा का कृष्ण से होना दूर
और रुक्मिणी का सिंदूर
है एक ही प्रेम के दो रूप-
ना मूर्ति में ना प्रतिमा में
कन्हिया को देखा है मन मे
खोल ली जो मन की अखिया
न खोलू रे तन की अखिया
मन से देखु सावरिया को
तन से ना चाहू कुछ और रे-
ना समझा किसिने प्रीत को
ना समझा मेरी मीत को
थोप दिया मुझपर रीत को
फिर भी गाती रहि मैं कृष्ण गीत को-
प्रेम मे ना किसीकी हार होती है ना किसीकी
जीत प्रेम मे होता है तो बस समर्पण-
किसी ने कहा है सत्य को जानना कठिन है
और उसे स्वीकार करना उससे भी कठिन
वैसे ही जैसे
लोग ईश्वार को जान लेने के बाद भी
समर्पण नही कर पाते-