मैंने बारिश में भीगना चाहा
चौक में जंगल उग आया
बारिश में क्या था ये जानना कौतूहल था
तो एहसास में भीग कर ही
प्रेम कर लिया मैंने ..
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मुझे चाँद छूना था
रात की सीढ़ी चढ़ सफ़र पे निकली
हाथ कुछ तारे लगे
धरती पर पहुँचते ही वो जुगनू हो गए
प्रेम कल्पना है कोरी ..
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प्रेम का हक़ीक़त से कोई वास्ता ही नहीं।
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आजकल ये रातें मुझे, ख्वाबो में
ख्यालो के, किसी जंगल में,
ले जाती हैं...
(see caption)-
झाड़ ऊँचे और नीचे
चुप खड़े हैं आँख मींचे,
घास चुप है, काश चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है;
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें........-
मै जंगलों में ढूंढ़ता फिर रहा तुझे,
और तू बीच शहर में रहती थी कहीं।
मै खामोश पुकार रहा था तुझे,
कान खुले अनसुना कर रही तू कहीं।
मै था मुशाफिर पहाड़ों में भटका कोई,
तू थी रानी महलों में गुमशुम बैठी कहीं।-
जिस पर दिल का राज़ है।
जब भी दिमागी चुनाव आया है,
इस दिल ने अपना राज़ चलाया है।-
लोग मां बेचकर मौसी ख़रीद रहे हैं,
पेड़ काटकर छांव ढूंढ रहे हैं।
जंगल उजाड़कर A/C ख़रीद रहे हैं,
प्रदूषण फैलाकर हेल्थ इंश्योरेंस ले रहे हैं।
दूध - लस्सी छोड़ कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं,
रोटी छोड़ पिज़्ज़ा खा रहे हैं।
आग लगा कर पानी ढूंढ रहे हैं,
गांव छोड़कर शहर बसा रहे हैं।।
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कूचे को तेरे छोड़ कर
जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा-
हमारी संस्कृति आरण्यक-संस्कृति रही है। लेकिन अब ? हमने उन पावन वनों को काट डाला है और पशु-पक्षियों को खदेड़ दिया है या मार डाला है। धरती के साथ यह कैसा विश्वासघात है।
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सड़क डरा करती थी जंगल से गुजरते हुए
अब जंगल डर जाते हैं सड़क का नाम सुनकर-