Pankaj Sharma   (पंकज शर्मा "जलद")
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Joined 28 February 2019


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25 OCT 2021 AT 11:35

चलते-चलते हम तेरे साथ ही खोए थे,
कुछ सपने मेरे मेरी आंखों से ही रोए थे।
यूं अब किसपे लगाए इल्ज़ाम दगाबाजी का,
वो हम ही थे जो उनके दर पे सोए थे।।

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17 MAY 2021 AT 20:56

कुछ बाते हमारे दर्मियां भी होनी थी,
जहां सपने है वहां कुछ अधूरे ख्वाब भी होने थे।
मैने देखा है तारों को भी टूटते हुए,
इज़हार से मुश्किल चीज, हुं! कुछ और नही।।

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3 APR 2021 AT 21:45

कुछ ख़ास ही होगी,
या कुछ आम-सी होगी,
कोई पूछे मुझसे तो कहूं की
शायद किसी किताब सी होगी।

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3 JAN 2021 AT 20:26

मै बातों को परदे लगा दिया करता हूं अक्सर,
मै सारे परदे फाड़ दूं अगर कोई यार मिल जाए।

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17 NOV 2020 AT 13:54

भूली किताबों को ही तो पढ़ने में मज़ा आयेगा,
जो याद है वो किताबे लेने कौन ही आयेगा।

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16 OCT 2020 AT 22:13

शब-ए-गम गुजार दी जिसने तन्हाइयों में,
आज हुजूम उमड़ पड़ा है उसे अलविदा कहने।

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8 OCT 2020 AT 6:51

कतरा - कतरा जैसे - जैसे बह रहा है,
वैसे - वैसे होले - होले उद्वेलित मन रो रहा है,
फर्श पर लाल छींटों का ये रुदन,
अब समझ नहीं आता मुझे।
रात इक पहेली है
समझ सको तो जादूगर हो तुम

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25 SEP 2020 AT 20:43

मै जंगलों में ढूंढ़ता फिर रहा तुझे,
और तू बीच शहर में रहती थी कहीं।

मै खामोश पुकार रहा था तुझे,
कान खुले अनसुना कर रही तू कहीं।

मै था मुशाफिर पहाड़ों में भटका कोई,
तू थी रानी महलों में गुमशुम बैठी कहीं।

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23 AUG 2020 AT 21:24

उम्र गुजार दी शहरों में मैंने, गांवों में रखा ही क्या है,
बैठा रहा अंधेरों में, साला उजालों में रखा ही क्या है।

हाँ जनाब ऐसे ही झूठ बोलकर जीतें है लोग यहां,
अरे! छोड़ो ईमानदारी से जीने में रखा ही क्या है।

यूँ ज़िन्दगी मेरी मदहोश है तो मदहोश सही,
अरे! होश में आने में रखा ही क्या है।

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19 AUG 2020 AT 21:04

देखो वतन कि कश्ती खो गई है कंही,
साहिल का रास्ता बताए ऐसा एक गांधी चाहिए।

ना पहुंचा सको साहिल पे इसे तो ना सही,
मुझे तेरे लब से बस "जय हिन्द" का उदघोष चाहिए।

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