चलते-चलते हम तेरे साथ ही खोए थे,
कुछ सपने मेरे मेरी आंखों से ही रोए थे।
यूं अब किसपे लगाए इल्ज़ाम दगाबाजी का,
वो हम ही थे जो उनके दर पे सोए थे।।-
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कुछ बाते हमारे दर्मियां भी होनी थी,
जहां सपने है वहां कुछ अधूरे ख्वाब भी होने थे।
मैने देखा है तारों को भी टूटते हुए,
इज़हार से मुश्किल चीज, हुं! कुछ और नही।।-
कुछ ख़ास ही होगी,
या कुछ आम-सी होगी,
कोई पूछे मुझसे तो कहूं की
शायद किसी किताब सी होगी।-
मै बातों को परदे लगा दिया करता हूं अक्सर,
मै सारे परदे फाड़ दूं अगर कोई यार मिल जाए।
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भूली किताबों को ही तो पढ़ने में मज़ा आयेगा,
जो याद है वो किताबे लेने कौन ही आयेगा।-
शब-ए-गम गुजार दी जिसने तन्हाइयों में,
आज हुजूम उमड़ पड़ा है उसे अलविदा कहने।-
कतरा - कतरा जैसे - जैसे बह रहा है,
वैसे - वैसे होले - होले उद्वेलित मन रो रहा है,
फर्श पर लाल छींटों का ये रुदन,
अब समझ नहीं आता मुझे।
रात इक पहेली है
समझ सको तो जादूगर हो तुम-
मै जंगलों में ढूंढ़ता फिर रहा तुझे,
और तू बीच शहर में रहती थी कहीं।
मै खामोश पुकार रहा था तुझे,
कान खुले अनसुना कर रही तू कहीं।
मै था मुशाफिर पहाड़ों में भटका कोई,
तू थी रानी महलों में गुमशुम बैठी कहीं।-
उम्र गुजार दी शहरों में मैंने, गांवों में रखा ही क्या है,
बैठा रहा अंधेरों में, साला उजालों में रखा ही क्या है।
हाँ जनाब ऐसे ही झूठ बोलकर जीतें है लोग यहां,
अरे! छोड़ो ईमानदारी से जीने में रखा ही क्या है।
यूँ ज़िन्दगी मेरी मदहोश है तो मदहोश सही,
अरे! होश में आने में रखा ही क्या है।-
देखो वतन कि कश्ती खो गई है कंही,
साहिल का रास्ता बताए ऐसा एक गांधी चाहिए।
ना पहुंचा सको साहिल पे इसे तो ना सही,
मुझे तेरे लब से बस "जय हिन्द" का उदघोष चाहिए।-