सोच छोटी नही वो मेरे कपड़ों को छोटा बताते है,
बलात्कार करके वो बलात्कारी नही, तो मुझे चरित्रहीन क्यों बुलाते है।।-
तेरी गन्दी सोच एक दिन तुम्हें ही खा जायेगी ,
अन्दर ही अन्दर खोखला कर ,तुम्हे ही जलायेगी
लाख कोशिशे कर ले तू ,मेरा वजूद न मिटा पायेगी
तेरी छोटी सोच एक दिन तेरे ही काम आएगी ।
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तुमने उसकी सीरत का नाप उसके कपड़ो से किया,
तेरी सीरत का नाप उसने बेहद छोटी सोच से किया।-
छोटी सोच और
शौचालय कितना
भी अच्छा बना लो
आगे सब समझदारो में
बात हुई है समझ गये होंगे-
ऐंची बुद्धि, भैंची सोच, काम करें ये एक,
सबके ऐब निकाल के इनका दिन ले ब्रेक।
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दोनों में ही
कुछ... फैल रहा था,
कुछ... सिमट रहा था,
वो... सिमट रही थी,
वो... फैल रहा था,
डर!
फैल रहा था,
सोच!
सिमट रही थी........-
शराफत कहती निकल लो चुपचाप वहाँ से जहाँ बदनामियों का शोर ज्यादा है..
अब ऐसे लोगों को कौन समझाए जो अपनी ही दकियानूसी सोच का प्यादा है..-
छोटी स्कर्ट भी मेरी आज,
रोने लग गई मेरे साथ,
आखिर कसूरवार मेरे
बलात्कार का,
उसे भी ठहराया गया है।-
कल गुजर रही थी
सड़क किनारे की बस्ती से
बदबू का जबरदस्त झोंका
वहीं रखी थी गणेश प्रतिमाएँ
कुछ सुसज्जित कुछ अधबनी
मनोयोग से बनाते
पसीने में भीगे शरीर
मैले कुचैले कपड़े
लगा जाने कबसे नहाये न हो
वहीं कार में बैठे मोलभाव
करते धनाढ्य
दिन में जिन लोगों से हम करते घृणा
उन्ही हाथों की मूर्तियां
घर लाते ही हो जाती हैं पवित्र
कितनी छोटी सोच है हमारी
अचानक ख्याल आया ....-