सौम्या उपाध्याय🖤🕉️   (ख़्वाहिश🍁)
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Joined 9 January 2020


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गुज़र गया मंजर फिर याद क्यूं करना है
जीने को अभी ज़िन्दगी आगे सारी पड़ी है ।।

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ख़्वाहिश की डायरी में हमने चंद ख़्वाहिशे ही लिखी थी
मगर उन ख़्वाहिशों में भी हर ख़्वाहिश अधूरी रह गयी ।।

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मंजिल तो वहीं है बस रास्ते में रूकावटें बहुत है "ख़्वाहिश"
हमें चलते एक अरसा हो गया पर खुद को हम आज भी वही देखते हैं ।।

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बदलने चले थे तकदीर अपनी "ख़्वाहिश"
यहां तकदीर ने हमें ही बदल के रख दिया ।।

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हम अच्छे हो कर भी छले गये "ख़्वाहिश"
अब मलाल ये है कि अच्छा होना, बुरा कैसे हो गया।।

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भरोसा नहीं रहा आजकल वाली मोहब्बत की बातों पर ख़्वाहिश,
हम हीर रांझे वाले आशिक आज की आशिकी को तौहीन मानते हैं।।

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लूट जाती हैं खुशियां सारी मोहब्बत होने के बाद,
इंसा जिन्दा भी रहता है मगर जीता मर कर है ।।।

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हदें गर पाता हो जिन्हें, उन्हें मोहब्बत नहीं करनी चाहिए,
क्योंकि हकीकत यही है कि मोहब्बत में हदें नहीं होती।।

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मोहब्बत की ख़्वाहिश हजाऱ दफा कर के देख ली ,
जब बात समझने पर आई, कोई समझदार मिला ही नहीं।।

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पैसे से ही रिश्ते निभाए भी गये है ख़्वाहिश
वरना किसे फिक्र इंसा जी कैसे रहा है यहां।।

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