सौम्या उपाध्याय🖤🕉️   (ख़्वाहिश🍁)
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Joined 9 January 2020


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Joined 9 January 2020

एक वक्त वो था जब इस वक्त के‌ लिए कश्मकश कर रहे थे "ख़्वाहिश "
एक वक्त आज है कि वक्त ही नहीं मिलता कि खुद को थोड़ा वक्त दें।।

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ज़ख़्म की क्या ही बात करूं मैं "ख़्वाहिश"
समय मरहम ना होता तो जिन्दा मैं भी ना होती।।

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ख़्वाब जितने भी देखें सब टूटते चले गये।।
लब्ज तीखे क्या हुए लोग छूटते चले गये।।
तन्हाइयों ने फिरइंसा की कीमत जब बताई,
हम थोड़े नम्र क्या हुए लोग लूटते चले गये।।
ख़्वाहिश 🖤

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एहसास था वो किस्से ज़िन्दगी के हर रोज याद आने वाले हैं।
बीते हुए पल आंखों के सामने आके हर पल रूलाने वाले हैं।।
हम आज में जीने वाले लोग थे साहब कल का सोचा कहा था,
कि पतझड़ आने पर कोई पत्ते जहां में कहां ठहर पाने वाले हैं।।

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अब मांगना ही छोड़ दिया है ऊपरवाले से कुछ भी
क्योंकि मुझे पता है वो वही देगा जो मुझे नहीं चाहिए।।

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नौकरी भ्रम निकली कि ज़िन्दगी अच्छी हो जाएगी "ख़्वाहिश"..
यहां राखी भी दूर अपनों के बगैर अकेले मनानी पड़ी ।।

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ख़बर तुम्हें तो हों ही गयी थी
कि छोड़ कर तुम जाने वाले हों ...
मगर कभी सोचा था
अपने कितने अज़ीज़ो को तुम रूलाने वाले हों..
तुम्हारा उस रोज यह कह कर रोना
कि लगा था नहीं मिल पाएंगे तुम लोगों से
इल्म था ना तुम्हें कि लौट के
वापस तुम
नहीं आने वाले हों ।।

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मंजिल हासिल हुई बहुत कुछ खोने के शर्तों पर
अब वो सब खोई हुई चीजें बहुत याद आती है।।

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तकदीर का तो पता नहीं, पर मेहनत से मैंने वक्त बदलते देखा है,
ख़्वाहिशें हकीकत उनकी हुई, जिनको वक्त पर चलते देखा है।।

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नींद ऑंखो में भरी हुई है,मगर दिमाग है कि सोता नहीं है।।
कुछ हद तक जीने के बाद समझ आया कि दिल से कोई काम होता नहीं है।।

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