।।चश्मिश।।
(कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)
-ऋषिकेश-
चश्मिश का चश्मा ही है,
जो चुराता मेरा दिल है..
उसके होठों के पास जो तिल है,
माशा अल्लाह...कातिल है...।।
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वो केहते है कि चश्मा उतार कर तो देखो,
लाखो दिवाने हो जाएंगे तुम्हारे,
अब उन्हे हम कैसे बताये कि,
चश्मा बिना उतारे ही हज़ारो दिवाने है हमारे... 😘-
अक्सर सब पूछते हैं
ये तुम हमेशा चश्मिश क्यूँ बनी रहती हो?
तब
कभी चश्मिश आँखों से छलक जाता है
कभी चश्मिश आँखों में झलक जाता है
जवाब
- अनुशीर्षक --
बिंदी चूड़ी लहज़ा
उसपे चश्मे की सौगात,
फीका पडा दूल्हा
एक चश्मिश से
बीमार सारी बारात।-
वो चश्मिश ही क्या,
जो अच्छी ना लगे,
वो आरज़ू की क्या,
जो पुरी ना हो ....
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मेरे सामने वाली खिड़की मे,
वो चश्मिश रहती है!
जब वो खिड़की मे आती,
तो रौनक लाती है !
जब वो खिड़की मे आती,
तो चाय का शौक जगा जाती है!
मेरे सामने वाली खिड़की मे,
वो चश्मिश रहती है !
जब वो खिड़की मे आती,
तो अपनी अदाओं से,
अपना बना जाती है!
मेरे सामने वाली खिड़की मे,
वो चश्मिश रहती है !-
वो बातें करती एक दम किशमिश
किधर हो तुम आज कल चश्मिश
क्या भी क्या सताना प्यारी मिस
अब इंतजार की ये मिटाओ तिश-
चश्मिश तेरे साथ हुई चंद बातचीत भी
पुरा दिन खुश रहने के लिए काफ़ी है..!!-