चरित्र एक वृक्ष है और मान एक छाया। हम हमेशा छाया के बारे में सोचते हैं जबकि असलियत तो वृक्ष है।
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एक पल में चरित्र चित्रण कर दिया
वो कहती है उसे लिखना नहीं आता-
"चरित्र" एक वृक्ष है.. और...
"प्रतिष्ठा, यश, सम्मान" उसकी "छाया"
लेकिन "विडंबना" यह है कि..
वृक्ष का "ध्यान" बहुत कम लोग रखते हैं
और "छाया" सबको चाहिए.....!!
🌷आपका दिन शुभ हो🙏🌷-
पैन में जिस रंग की स्याही होगी लिखावट भी वैसी ही होगी
ठीक वैसे ही मन में विचार आएंगे
और कर्म भी वैसे ही होंगे।
रिश्तों को तौलने का नहीं, सम्मान देने का प्रयास करें..!
एवं...
मित्रों को परखने का नहीं, समझने का प्रयास करें!!
🌷आपका दिन शुभ हो🙏🌷-
आसान मरूंगा ऐसा,
मुश्किल भी रोएगा...
महफ़िल भी रोएगी,
हर दिल भी रोएगा...
डूबेगी कश्ती मेरी,
तो वो साहिल भी रोएगा...
फखत इतना प्यार बांट दूंगा,
इस दुनिया को, ऐ मेरे दोस्त !
कि मेरे मरने के बाद,
मेरा आशिक़ तो क्या,
मेरा क़ातिल भी रोएगा...
हां ! मेरा क़ातिल भी रोएगा...-
जिन लोगों को डर लगता है मेरी शख्सियत के सामने खड़ा हो पाने से
सिर्फ वही लोग तो हैं जो गलत चरित्र चित्रण करते हैं मेरा जमाने से-
इतनी समझ नहीं मुझमें,
तुम मेरी समझ से परे हो।
लगते हो आधुनिक भी,
मगर रूढ़ियों से भरे हो।
हो सरल से सरलतम,
साथ ही जटिलतम बड़े हो।
बचपने से सराबोर
फिर भी परिपक्व बड़े हो।
इतनी समझ.. दुनिया सोचे हो उथले
अंदर तुम खूब गहराई धरे हो।
दिखो जितने ऊपर
तुम उतने ही जमीं के अंदर गड़े हो।
आस्थावान भी इतने
जैसे हिय में सदा ही ईश्वर जड़े हो।
शील, मिलनसार, होनहार, स्पष्टवक्ता
किरदार तुम तो अनोखे बड़े हो।
इतनी समझ..
चेहरे पर मुस्कान लिए
तुम सदा जिम्मदारियों से भरे हो।
जीवन की चुनौतियों से,
तुम सदा स्वयं ही लड़े हो।
समस्याओं के सागर में,
डूबकर फिर उबरे हो।
काबिल हो भरपूर
व्यक्तित्व तुम्हारा स्वयं तुम ही गढ़े हो।
इतनी समझ नहीं मुझमें,
तुम मेरी समझ से परे हो ...-
जब हम किसी के चरित्र का वर्णन कर रहे होते हैं,
तब हम वास्तव में स्वयं के चरित्र का वर्णन कर रहे होते हैं।-
बस नूर समझ ना रख घूँघट में मुझे....
पर्दा आँखों पर हया का होना ही चरित्र को परिभाषित करता है।-