सुझ-बुझ न थी घर की घुमने में बेहाल रहता था
एक दौर था साहब जब मैं भी खुशहाल रहता था-
सुनो..
आ जाया करो ना घूमने मेरे ख्वाबों में...!
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पाबंदी तो बाहर रोड पर निकलने मे हैं....!-
-:फिर समोसे की कड़ाही:-
लौट आयेंगे वही
गुजरे जमाने।
चाट के ठेले लगाकर,
लछियों को साइकिल पर।
लकड़ियों की पेटियों में,
फिर मलाई-बर्फ घर-घर...
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
-सन्नी गुप्ता 'मदन'-
घूमने निकले हैं हम
आँखें चार हो गई
घूमते-घूमते आ गए वहाँ
जहाँ से जीवन की शुरुआत
हो गई।-
कब तक रखें इंतजार
जो हवाएं हमें रोके
घूमने निकल ही गए हम
चाहे हो सर्द मौसम के झोंके।-
गरम गरम चाय के साथ बिस्किट खाएं
नए नए दोस्त बनाऐं
अच्छी जगह घूमने जाएं
और अगर ज़्यादा ठंड लगे
तो कम्बल ओढ़ कर सो जाएं।-
पढ़ाई,लड़ाई और प्यार सब देखना है एक साथ,
तो घूमने आओ कभी प्रयागराज।।-
खुद से ही बात करती रहती हूं
आख़िर ये पागलपन कबतक
दोष और कमियां बहुत है मुझमें
कोई आ के सुधारे मुझे जबतक
देर हो चुकी होगी मैं खो चुकी रहूंगी तबतक
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गुरु बनारस मरना नहीं😍
जीना सिखाता है❣️
इसीलिए अगर आप घूमने के शौकीन हैं
तो बनारस जरूर आए..!!
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