दफना दिया जब सारा दर्द अपना,
वो कुरेद के पूछे घाव कहां है!-
अब लिखने लग गया हूं हर रोज़ तुझे अपनी कविताओं में |
ताकि लोग जान सकें ,
कि कौन थीं वो
जिसने दिए हैं इतने घाव मुझे |
-
जानबुझ के न भरने दिया
दिल हार के भी जीत लिया कुछ दांव ऐसे होते हैं-
जब भी किसी चेहरे पर
कुछ अनकहे घाव
ख़ामोशी से ढके मिले तब
मन करता है के कहूं उस खुदा से के
ये अनकहे घावों के लिए
कोई मरहम
किसी दवाई की दुकान पर भी मिलता
तो कितना अच्छा होता !-
न चाकू, न खंजर,
न तलवार कर सकेंगे,
रकीब के दिल में घाव
मेरे लिखे अल्फाज़ करेंगे...-
कुछ पुरानी यादें हर घाव ताजा कर देती हैं,
पर,ये हौसलों की उड़ाने रंक को राजा कर देती हैं|-
है आरजु गर, जी भर के देख लो मुझे।
कल दिखूँ न दिखूँ, उसका क्या पता।।
खिला हुआ गुल हूँ मैं, सज़ा लो मुझे।
कल खिलूँ न खिलूँ, उसका क्या पता।।
लगे है घाव कई, डालो नमक थोड़ा।
कल चीखूं न चीखूं, उसका क्या पता।।
खुदाबख़्स नज़ाकत हूँ मैं, जिंदा हूँ।
कल रहूँ ना रहूँ, उसका क्या पता।।-
घाव भर जाते है समय के साथ,
पर निशान रह जाता है।
दिल से तो उतर जाता है इंसान
पर याद में हमेशा दस्तक देता रहता है।।-
टूट के बिखरे थे जो अब सवरने लगे हैं
सदियों पुराने घाव मेरे आज भरने लगे हैं
आदत नहीं जाती मुझे दुःखी करने वालों की
दवा महँगी कर दी नमक सस्ता करने लगे हैं-