यौरकोट अब घर सा नहीं दुकान सा लगता है।
हर दुकानदार यहाँ अब ग्राहक को ठगता है।
भीड़ लगी होती है यहाँ कुछेक दुकानों में
कोई ग्राहक के इंतज़ार में रात भर जगता है।-
व्यापारियों का गंदा अर्थशास्त्र
जब किसान उगाता है टमाटर प्याज
तो खरीदते नहीं या फिर खरीदते हैं दो रू के भाव
लागत और मेहनत भी वसूल नहीं होती
किसान होता है बर्बाद या तो फेंकता है सब्जियाँ
सड़को पर,या मजबूरी म़े बेचता है दो रू भाव
फिर आ जाती है सब्जियों की कमी तो कमीन
व्यापारी ..फिर लाचार किसानों से दो रू किलो
में खरीदे गये टमाटर प्याज को चालीस से सौ तक
बेचता है ..ये गंदा अर्थ शास्त्र सालों से चला आ रहा
है..किसान और ग्राहक पर बोझ आ रहा है..
क्यों नहीं किसानों के लिए उचित नीती बनाई जाती है
क्यों नहीं सब्जियों की कीमत सरकार द्वारा
तय की जाती है...ये घटिया अर्थशास्त्र कब तक।
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नाहक वाहक बन सबों के सपने को तुम चूमते हो
तेरे प्रयासों का जब कोई साधक नहीं
तो फिर हर किसी के गम का ग्राहक क्यों बने फिरते हो!?-
रोज़ के ग्राहक को, कुछ छूट तो दी जाती है।
पर यह बात दर्द समझें, तब तो कोई बात हो।-
गंगा के किनारे बैठी एक बूढ़ी औरत,
कुछ फूल, दीप, दोने और मालाएँ लिए।
पुरानी सूती साड़ी के पल्लू से मुँह पोंछती,
झुर्रियों में झाँकता है उसका विश्वास।
हँसते हुए पड़ते हैं अब भी गड्ढे उसके गालों में
और खिल जाती है अधूरी दंतपँक्ति।
पुराने फ्रेम के पीछे से एक जोड़ी आँखें।
खोजती हैं घाट पर नहाते लोगों में ग्राहक
और मोल भाव करते हुए अनुनय इतना
कि कर बद्ध हो जाने को हो जाते आतुर।
सामान के साथ देती है आशीर्वचन भी
'क्योंकि' उसके लिए दोनों एक ही हैं।
गंगा भी ग्राहक भी।-
ग्राहक को भगवान बनाने की
प्रवृति ने ग्राहक को शैतान और बेख़ौफ़
बना कर रख दिया है।-
अधिकार आपले,
संविधानात समाविष्ट आहेतं...
प्रत्येक गोष्ट पारखून घेणे,
ग्राहक म्हणून आपले हक्क आहेतं...
याचं हक्का सोबत,
राष्ट्रहित सुद्धा महत्त्वपूर्ण आहे,
म्हणून प्रत्येक गोष्टीची पक्की बिल पावती घेणे,
राष्ट्रहितात आपले योगदान आहे...-
मनातुनी तु ठाम हो
फसवेगिरी ने तु फसू नको
नवयुगात माघार घेऊ नको
अन्यायातुन चालू नको
न्याय न मिळवता जाऊ नको
खरेपणास तू भिऊ नको
खोट्या जगात तू भुलू नको
अविश्वसाच्या अहारी पडु नको
विश्वास दाखवला तरी ठेऊ नको
या जगात हार मानू नको
सिध्द केल्याशिवाय तू राहू नको
ग्राहक राजा जागा हो....
कलियुगाचा सत्यशिल्पकार हो....-
दान पर इतने बड़े-बड़े व्याख्यान देने वाले, दान की महिमा का गुणगान करने वाले खुद कभी दान नही करते, केवल भरते हैं झोली अपनी कुछ अजीब नही लगता ?
#मनु-