गृह लक्ष्मी
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चरण कमल पड़े जो, तेरे मेरी चौखट पे ,
घर संसार खिल उठा कमल के समान तेरे आगमन से ।
तूने जो बांध के रखा , हर रिश्ते को अपने आंचल से ,
घर-घर नहीं रहा मेरा ,बन गया स्वर्ग तेरे आगमन से ।
एक,एक सिक्का जोड़, तूने जो महल मेरा बनाया है ,
टूटी हुई झोपड़ी से मुझे महलों में बिठाया है ।
तू गृह की मेरे शोभा ही नहीं , तू स्थिरता की देवी है ,
गृह लक्ष्मी के रूप में मेरे संपूर्ण घर को बांध के रखती है ।
तू मेरी गृहालक्ष्मी ही नहीं मेरी महालक्ष्मी है ।।
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वो कहते हैं एक पिता की बेटी से,
तेरे बाप ने हमे दिया ही क्या हैं,
वो भूल गए है शायद.....
इक पिता ने उसे अपने,
कलेजे का टुकड़ा सौपा हैं,
वो सिर्फ़ बेटी नहीं उस घर की लक्ष्मी है,
वो जो उसके बाद उनकी,
पीढ़ी को आगें ले जाएगी,
ये बात उनको उस दिन समझ आयेगी,
जब ख़ुद की बेटी विदा होकर,
किसी दूसरे के घर जायेगी,
तब वो समझेंगे एक बेटी के पिता का सम्मान,
वो बेटी जो ख़ुद जलकर,
किसी के घर की खुशियों की,
लौ बन जायेगी.....और
पिता का सर गर्व से उठायेगी,
दो घरों को ख़ुशियों से महकायेगी,
अपने कदमों से घर आँगन में,
ख़ुशियों की छठा महकायेगी,
जब मेरे घर की लक्ष्मी,
उनके घर की गृह लक्ष्मी बन जाएंगी,
मिलेगा उनको भी वो सम्मान एक दिन,
जब एक नन्ही परी गृह लक्ष्मी बन,
उनके घर आँगन में आएंगी।।
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एक नारी ही गृह लक्ष्मी कहलाती है चाहे वो बेटी हो या स्त्री ,जिस घर में जन्म हुआ या जिस में घर जाना है । वो दोनों घरों को महकाती है और जब शादी के पवित्र बंधन में बन्धती है ।तो गृहिणी बन तिनका तिनका जोड़ कर प्यार और परिश्रम से अपने परिवार को संस्कार से सींचती है ।छोटे को प्यार बड़ों को सम्मान देती है । घर के खान - पान से लेकर साफ- सफाई का ध्यान रखती है ।एक नये परिवार को अपनापन से भर देती है ।
लेकिन आज कल गृह लक्ष्मी का मतलब समझा जाता है कि लड़की दहेज में मोंटी रकम लेकर आएंगी और घर को धन लक्ष्मी से भर देगी । घर में पैसे आएंगे तो सुःख ही सुःख से भर जाएगा । शायद इसी मानसिकता की वजह से कई घरों में स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है ।उसके माता पिता से पैसे माँगा जाता है । ये लोग गृह लक्ष्मी का मतलब धन-वैभव को समझते हैं ।जो निर्जीव वस्तु है वो अपने घर की सर्जीव गृह लक्ष्मी को मान सम्मान देते ही नहीं ।और दुःख की बात है स्त्री इसे अपनी किसमत समझ झेल रही है-
पापा की मैं तो लाडली, और मम्मी की मैं नसीहत हूँ!
मैं तेरे घर की गृह लक्ष्मी, बन कर आई तेरी इज़्ज़त हूँ!!
छोड़ के बचपन की सखियाँ, अब मैं तेरी संगिनी हूँ!
रखना मान सदा मेरा प्रिय, मैं तो तेरी अर्द्धांगिनी हूँ!!
पर छोह यही मन मे, जो बेटी लक्ष्मी बताई जाती है!
फिर कोख में बिटिया घर मे क्यों, बहू जलाई जाती है!!-
सभी औरत हैं लक्ष्मी का रूप
घर में होती गृह-लक्ष्मी का स्वरूप।
माँ, दादी ,बहन ,भाभी के हैं रूप
गृह-लक्ष्मी होती अन्नपूर्णा का रूप।
कुटुम्ब बनाती बस यही सम्पूर्ण
गृह-लक्ष्मी रूप में देवी का स्वरूप।
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बेजान सी चीजों में भी जान भरती है ,
वो घर के हर कोनों में एहसास भरती है ।।
गूँजती है खिलखिलाहट होने से उसके ,
बिना उसके हर घर बेजान लगता है ।।
पापी है वो मानव जो करता है खिलवाड़ उससे ,
कभी कोख में तो कभी ससुराल में बेटी जलती है ।।
समेट लेती है तकलीफों को खुद के भीतर ,
छलकाती प्रेम का वो अथाह भंडार लगती है ।।
सहनशीलता ले जन्मी वो हर बातों का हल रखती ,
सीता से लेकर चंडी तक हर रूपों में अदम्य लगती है ।।
होती है खुशियाँ जहां होते हैं पांव उसके ,
अगर ना हो वो तो हर मन वीरान लगती है ।।
यूँ तो हर छोटी बातों पर आँखें नम हो जाती उसकी ,
पर मुश्किल हालातों में वो लोगों की ढाल बनती है ।।
कल्पना कर सकते है बिन पुरूषों के लेकिन ,
बिन गृहलक्ष्मी के दुनिया श्मशान लगती है ।।-
गृह लक्ष्मी यानी स्त्री जो सारे रिश्तों को बहुत अच्छे से संभालती हैं।
आज के युग में गृह लक्ष्मी का योगदान सभी क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं।
गृह लक्ष्मी का सम्मान करना हमारी संस्कृति,कर्तव्य और धर्म है।
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तू नन्ही परी थी माँ बाप की
तुझे ये रीति निभाना है
छोड़ अपने माँ के आंगन को
किसी दूजे आँगन जाना है
गृह लक्ष्मी बन कर बेटी
तुझे माँ बाप का मान बढ़ाना है
तुझे उस घर का रौनक बनके
खुशियों का दीप जलाना है
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