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सुधा,
तुम्हारा चंदर कोई देवता नहीं है। तुम्हारा चंदर एक भटकती रूह है। तुमने उसे जब अपने प्रेम का सरोवर दिया, वह उस सरोवर में नादानों की तरह डूब गया। मगर जिस क्षण उसका मोह भंग हुआ, वह एक संतप्त जीव की भांति तड़प उठा। उसे दुनिया के सभी संबंध बंदिश लगने लगे। उसे अपने बुद्धिजीवी होने का आभास होने लगा। उसने वासना को सत्य मान लिया। उसे इस बात की कद्र ही नहीं थी कि तुमने अपना सारा जीवन उसे समर्पित कर दिया है। वो साधारण आदमी जो तुम्हारे लिए देवता बन चुका था, वो अपने मन की भटकन में अधम, पिशाच, निर्गुण, नीरव, मांस का भूखा, एक दुर्मती, प्रेतात्मा बन गया था।
"शायद किसी मनुष्य की भक्ति
उसके मानवीय गुणों का खंडन कर देती है।
या फिर किसी का प्रेम में संपूर्ण समर्पण उसे दुर्बल बना देता है।"
सुधा यही गति हम दोनों की हुई है। सुधा, चंदर के जिस हृदय को तुमने अपने प्रेम के सागर से भर दिया था ,शायद वक्त के दानव ने उसे निगल कर सुखा दिया है और उसमें कठोरता का ज़हर भर दिया है। मुझे नहीं मालूम क्यों तुम्हारे प्रेम ने मुझे देवता बना दिया। देखो, मैं दुर्भागी तो साधारण मनुज भी ना बन सका। यह एक कुंठा लेकर ही मुझे अब जीना होगा। मुझे ख़ुद पर अभिमान नहीं है। मैं खुद से ही अब घृणा करता हूं। हां, मैं हूं "गुनाहों का देवता"।
तुम्हारा,
चंदर-
लिखी खुदा ने मुहब्बत सबकी तकदीर में,
हमारी बारी आई तो स्याही खत्म हो गई......!!!
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करते हैं नफ़रत का व्यापार और
मोहब्बत खरीदना चाहते हैं,
वो गुनाहों के देवता बन हुए हैं ,
पता नहीं क्यों लोग उन्हें पूजना चाहते हैं ।।
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कहीं हद तक ज़रूरी है पश्चाताप हृदय में होना,
बिना पछतावे के किसी गुनाह की माफ़ी भी तो नहीं मिल सकती न,
अफ़सोस का होना ही तो हमें क़ाबिल बनाता है माफी के,
वरना तो सज़ा गुनाहों की गुनाहगार तक पहुँच ही जाती है.... देर सवेर।-
यह कुसुम गर टूटकर किसी रोज़ जब मुरझाएगा,
कौन भंवरा होगा जो इस पर स्नेह दिखाएगा?
जिस रवि की किरणों ने इस फूल को जीवन दिया,
आज जो वो फिर गया तो कुसुम का अब होगा क्या?
गर सुमन को मारना ही सूर्य का था लक्ष्य तो,
क्यों नहीं उसको जलाकर राख उसने कर दिया।
दे रहा था नित दिन उसको पुण्य जीवन का प्रकाश,
हाय, आज मगर उसमें कितना ज़हर भर दिया।
क्यों भला होता है ऐसा प्रेम की हर कथा में?
एक बनता देवता और दूसरा बनता अधम।।-
तुम चले गए तो कोई बात नही.....।
मेरी डायरी में मेरा जिक्र तुमसे ज्यादा तो नही ??
लिखूंगी एक उपन्यास मैं भी हम दोनों पर ।
मैं तुम्हारी "सुधा" तुम मेरे "गुनाहों के देवता" तो नही ??
यकीं है इतना कि मिलना तुमसे साजिश है एक गहरी .....।
यूँ हर दफा बिछड़कर मिलना महज इतिफ़ाक तो नही.....??-
आज मन कुछ घबरा रहा हैं ❤️गुनाहों का देवता ❤️ उपन्यास पढ़ के...
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किसी खास की हसरत में तलबगार मत बनना...
खुदा कहकर किसी को इबादतगार मत बनना...
चाहना भुलाना निभाना भी तुम...
मगर दूसरे की गलती का 'तुम' गुनाहगार मत बनना।-