और उसकी बोलती हुई दो आंखें....
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अपनी कल्पनाओं से शब्दों को बुनना सीख रही हूँ ।
अवतरण दिवस 24 /6/1999
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कहां से शुरू करें?
तुम्हारे मेरे सवालात् से शुरू करें
या आखिरी मुलाकात से शुरू करें
नहीं तो फिर उस सांवली रात से शुरू करें
चलो अच्छा अब तय हुआ
अब प्यार से शुरू करें।।-
ये सोचने में एक रात गुजर गई कि
आखिर इस खालीपन की वजह क्या है
उसे गए तो ज़माने गुजर चुके हैं .....।।-
क्योंकि पता है तुम्हें ?
अनकही बातों और जज़्बातों का बोझ ,
जिंदगी की हर एक साँस पर भारी लगता है ।।-
.........आंखों में संमदर छुपाया है
कल रात मैंने किसी की ख्वाहिशों का महल ढहाया हैं
क्यों सही गलत के खेल में मैंने खुद को ही उलझाया है ?
सबको खुश रखने में मैंने सिर्फ खुद को ही तो रूलाया है
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निराशा के बादल छट जाएंगे आंखों में ख्वाब नए सज जाएंगे।
खुलकर उस दिन हंसोगी तुम जिस दिन मेरी नजर से खुद से मिलोगी तुम ।।-
बेवजह यूँ रात भर चाँद तकने की
तुझसे बात करने तेरी बात सुनने की
कसमें प्यार मोहब्बत सब बातें हैं फिजूल
सिर्फ इतना पता है शायद तेरे साथ चलने की
आदत सी हो गई है-