ताल्लुकात हमनें इतने गहरे बना लिए ,
दिल - दरवाज़े के सारे पहरे हटा लिए ।-
मानती थी मैं खुदा खुदगर्ज वो समझ गए
पूजती थी जो उन्हें वो भ्रम अब मिटा गए
कैसे भुलाऊं मैं उन्हें वो जख्म गहरे दे गए।
कहते थे कुछ भी हो जाए
ना आंख तुम्हारा भरने दूंगा
और खुद ही आंखों में
गम का सौदागर छोड़ गए
कैसे भुलाऊं मैं उन्हें वो जख्म गहरे दे गए।
खुशियों के बारिश में भीगा कर
दर्द के कर्ज में डूबो गए
आंधी बनकर वो मुस्कान उड़ा कर ले गए
कैसे भुलाऊं मैं उन्हें वो जख्म गहरे दे गए ।-
मैंने
नहीं लिखा
तुम्हारा नाम
किसी पेड़ में गोद कर
न ही किसी धरोहर की दीवार पर
न कॉलेज की किसी मेज पर,
वो तो मिट ही जाते वक़्त के साथ ।
पर तुमने जो लिखा था,
मेरे सीने में अपनी अंगुली के पोर से,
वो वक़्त के साथ और गहरे हो गये ।
हो सके
तो एक बार आ जाना
और इन्हें मिटा जाना।
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दिल की तलाशी लेता है कौन
ज़ख्म जो दिल पर गहरे हैं
उन्हें देखता है कौन।-
वो शौक,वो सिलसिले ,वो निसबत नही रही
वो दिल नही रहा ,वो तबियत नही रही....!-
हाले दिल सुनाकर लोगों से क्या मिलेगा,
ज़ख्म और गहरे होंगे दर्द नया मिलेगा..!!-
चाय का रंग गहरा होना लाज़मी है जनाब !!
मोहब्ब्त का रंग है ये निखरना है उसे लाजवाब!!-