क्या आप उदास हो.........
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धीर हूँ वीर हूँ गंभीर हूँ
दरिया नहीं समंदर हूँ
मुश्किलों के नाश का मैं नाद हूँ
अधर्म अनाचार का विनाश हूँ
मर्यादित हूँ संकल्पित हूँ
निज कर्म को समर्पित हूँ
तेज हूँ त्याग हूँ
वीरता की ढाल हूँ
धर्म का खंड्ग हूँ
प्रज्ञा का कमल हूँ
मैं गर्वित रक्षकों का वंशज हूँ
मैं शुभंकर शिव का वंशज हूँ-
शब्दों के बाण जरा सोच समझ कर चलाना साहब,
मुंह से निकलते ही घाव बड़े गंभीर कर जाते हैं।
ज़िन्दगी में कुछ हो ना हो जुबान मीठी जरूर रखना।
बोलने से पहले एक बार चिंतन जरूर करना।
मीठी जुबान परायों को भी अपना बना जाती है।
कड़वी जुबान आपके अपनों को भी दूर कर जाती है।
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तन्हाई का इश्क़ भी बड़ा गंभीर सा लगता है..!
किसी को ना पता चल जाए ऐसा लगता है..!!
कुछ दुश्मन भी हमने बनाया ऐसा लगता है..!
हर किसी की आंखों में खूने खंजर सा लगता है..!!
_📝Razi
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मैं
रचनाकार हूूँ ?
नहीं!
मैं तो गंभीर हूँ....!!
( शेष अनुशीर्षक में )-
हम्ममम न दवा काम आएगी न दुआ काम आएगी
सर्दी रातों में ग़ालिब बाबू की मुआह काम आएगी-
विकल हृदय में जब उत्पन्न हो इच्छा कोई अधीर
व्याकुलता वश नयन से झड़ झड़ झड़ता है नीर
अंङ्ग अंङ्ग में वेधित वेदना दैहिक उठती है पीड़
धधकती ज्वाला तन-मन में जलता सर्व शरीर
उस पर से तरुनाई यौवन लवण देह को चीर
पोर-पोर कल्प अनुराग हिया आर-पार तीर
उन्मुक्त चित्त व्यथित देह स्नेह अति गंभीर
प्रीतम मेरे अदृश्य हैं चराचर जगत में वीर-
🎀🐾"गलतियाँ माफ हों तो खुशी जायज है " 🎀🐾
गुनाह गिनते गिनते गलती हुई तो, गमगीन समां में रौनक लाई।
कम जो गिने गए गलती से तभी मुज़रिम की खुशी वापस आई।
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🍇🎀🐾"आवाज कहाँ से आती है..."🐾🎀🍊
🎀🍇🐾
शांत हो जब माहौल धीमी,
आवाज तभी एक आती है।
करती है भीतर तंग बहुत,
न पल को चैन फरमाती है।
🐾🎀✍️
करती है चुप चुप बातें कई,
कई राज वो मुझे बताती है।
देती है कभी "तालीम" सफर में,
कभी सीखने को उकसाती है।
🍎🎀🐾
तभी, सोचूँ मैं रह गम्भीर कि
ये आवाज कहाँ से आती है!
खोजा खूब तभी पता लगा!
दिल खुद ही तो चिल्लाती है।
🎀🐾✍️
दिल का अपना नियम है उसके
संग न रिश्ते गहरे जोड़िए कभी।
मन की सुनें विचार ध्यान से पर
दिल का हृदय मत तोड़िए कभी।
🍊🍎🎀
"समय समय " पर देख समय,
इस दिल ने ही नियम बनाया था।
खुद बैठा "महरूम " मुझे वह,
आज "खुशनसीब" बताया था।
🍎🍊🖐️
कभी स्वप्नों में मुझे नसीहत दे
वह अचंभित सी कर जाती है।
तभी सोचूँ, जब नींद में हूँ गंभीर
तो ये आवाज कहाँ से आती है!-
कही किसी ने बाँसुरी, कही किसी ने पीर,
मेरी तो तू ज़िंदगी, रही सदा गंभीर...-