बयां कर दिया हाल–ए–दिल, कुछ बचा है तो और बताओ,
मैं तो हूँ खुली किताब, कुछ और लिखना है तो और बताओ।
हर अल्फाज़ में है बस तेरा फ़साना, हर शय में तेरी परछाई,
हर तरीके से जता चूका हूँ, कुछ बाकी रहा तो और बताओ।
तेरे हर वादे पर किया मैंने यकीं, जब भी जो भी तुमने कहा,
एतबार में अगर रह गई कमी तो बेहिचक तुम और बताओ।
हर नियत समय पर मैं मिलता हूँ, भले ही कुछ देर के लिए,
मुलाक़ात में हो गर कमीबेशी तो कैसे मिलूं मैं और बताओ।
हर तीज त्यौहार पर मैं होता हाजिर तेरे कुछ कहने से पहले,
हर दिन मेरा त्यौहार, कोई बाकी त्यौहार है तो और बताओ।
हर पूजा पाठ में तू है शामिल, रब के बराबर मैं तुम्हे रखता हूँ,
मेरी आराधना, मेरी प्रार्थना, ओर इबादत है तो और बताओ।
सब संगी साथी पूछ रहे कब से, अब तो उसका नाम बता दो,
नाम का इशारा दे चुका, खुल्मखुला बताना तो और बताओ।
इंतजार की घड़िया करती टिक टिक, बेसब्र न कर अब तो तुम,
"राज" ने संकल्प ले रखा है, कुछ और मन्नत है तो और बताओ।
राज सोनी-
Body में हर बार Vitamin की कमी हो
ऐसा जरुरी तो नहीं ,
एक बार इंसानियत का भी Report करवा लेना...
क्या पता इंसानियत कम हो रही हो !-
अकेला रहता हूँ अब खुली किताब नही बनना मुझे
अक्सर किताबें पढ़ने के बाद रद्दी हो जाती हैं
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खुद को खुली किताब बनाने की ज़रूरत नहीं
किताब तो लोग पढ़ेंगे बस वक़्त गुज़ारने के लिए
बनना है तो बनो कोई राज़ ज़िन्दगी का ऐसा
कि एक सदी लग जाये लोगों को जानने के लिए-
एक खुली किताब...
किताबों से इश्क करना,
कितना अच्छा लगता है।।
उनके अल्फाज,
उनके शब्द बेमिसाल होते हैं।।
पढ़ना लिखना जिंदगी का,
हर एक हिस्सा,
अपने में ही नजर आता है।।
क्या लगता है,
यह एक जिंदगी का किताब है।।
हां,
यह तो एक खुली किताब है,
जिसमें वो शब्द लिखे हैं!!-
खुली किताब की तरह थे अहसास मेरे,
तुम कलम लेकर सही गलत जाँचते रहे••••-
खुली किताब हूँ मैं
अपने पन्नो को खोलकर
दुनिया के सामने रख देती हूँ
कोई यूँ ही पढ़ कर चला जाता है
तो कोई शाबाशी दे जाता है
कोई मेरे दर्द को पढ़ता है
तो कोई हर्ष को पढ़ता है
पर हर कोई मेरे हालातों को
नजरअंदाज कर देता है।
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खुली किताब के एक - एक
शब्द चमक उठते हैं
जब में उसे पढ़ने बैठती हूँ तो
वो भी मेरे साथ
मुस्कुराती है
मेरी खुली किताब
मुझे अपनी दास्ता
सुनाती है
जब मैं उसे पढ़ती हूँ तो
घुल सी जाती है वो
मेरे दिलों - दिमाग में
उस के एक - एक शब्द
मानों मेरी हकिकत
बँया कर रही
वो खुली किताब
आज बंद होने को है
फिर भी ना जाने क्यों
उसकी चुप्पी साथ नहीं दे
रही है उस खुली किताब को
खुला ही रहने को आतुर कर रही है-