कैसे आदमी को आदमी से सताया जाए?
चलो खाल ओढ़ कर भेड़ों में रहा जाए।
अपराध कम है के, कैसे जेलों को भरा जाए?
चलो थोड़ा देश में अराजकता बढ़ायी जाए।
कैसे हकीमों की नेकी का बंदोबस्त किया जाए?
फैला दो मर्ज इतने,के कोई ना बचने पाए।
कैसे आला अफसरों की जेबें भरी जाएं?
चलो फाइलों को थोड़ी धूल चटाई जाए।
मसले बढ़ गए है देश में, कैसे ध्यान भटकाया जाए?
चलो पत्रकारिता को थोड़ा, पैसों से तौला जाए।
बढ़ती बेरोजगारी को कैसे कम किया जाए?
देकर मुफ़्त इंटरनेट योजना, इनको व्यस्त किया जाए।-
हमें सुधरने की ज़रूरत है
हां.... हमें ही,
हम ही तो बना रहे हैं ना ये समाज |
पग -पग पर व्यथाएं बट रही है
हमारे विचारो से,
हर पल कोई मर रहा है
हमारे तिरस्कारो से,
हमारेे द्वारा की गई टिप्पणीयां खतरनाक है |
ये कचोट रही है
किसी के मन किसी के चरित्र को,
अब इस सोच को हमारी बदलने की ज़रूरत है |
ये तोड़ रही है
किसी का विश्वास हम पर,
हां.. हमें ही सुधरने की ज़रूरत है |-
मैं मूर्ख हूँ!
सुव्यवस्थित रूप से बँटे
और बाँटे इस संसार में
मुझे कोई सूक्ष्म-सी
विभाजक रेखा भी
दिखलाई क्यों नहीं दी?
मैं अति मूर्ख हूँ!
मैंने पुनः - पुन: अंतर ढूँढे,
फिर विफल हो गई!
अब मैं अपनी मूर्खता
स्वीकार चुकी हूँ!
क्योंकि...
यह मूर्खता भी परमानन्ददायी है!-
माँ चाहती थी मैं कुर्सी पर ही बैठूँ,
किन्तु छुटपन में मुझे तो केवल
लालसा थी उत्तंग विभिन्न कुर्सियाँ
बनाने की भर की...
छुटपन था,
तब कहाँ पता था कुर्सी का व्यवहार!
कुर्सियाँ अच्छी लगती थीं तब,
किन्तु अब समझती हूँ मैं कुर्सियों का स्वभाव...
इसलिए अब मुझे कुर्सियाँ पसंद नहीं!
चार पायों की ये कुर्सियाँ
व्यक्ति को बहुत नीचे गिरा देती हैं!-
हमेशा दिए गए जवाब न घुरें...
कभी-कभार अपने सवालों पे भी एक नज़र घुमा लें...!!-
पर्दा लगा दो
सिर्फ औरतों की इज्जत बचाने को
और इस समाज का क्या
जो खड़ा है उसे नोच खाने को
दम्भ भरते हो के तुम
औरत और उसकी इज्जत के रखवाले हो
जबकि सच ये है कि तुम ही अकेले
उस पर कींचड़ उछालने वाले हो-
शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है ! सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म, उसके विचार, उसकी वाणी, उसका व्यवहार, उसके संस्कार, और उसका चरित्र !
ऐसा कहने वाले लोग भी शादी के वक़्त सबसे पहले लड़की की सुंदरता देखते हैं....!!-
स्त्री को परिभाषित करता पुरूष
बदलने लगता है सभी अर्थ
"माँ" की बात आने पर!
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उसकी चाल पर या उसके बैठने के सलीके पर
उसके पहनावे पर या उसके हाज़िरजवाबी पर
उसकी आँखों की चमक पर या उसके जोरदार ठहाकों पर
उसकी बेधड़क आवाज़ पर या बेखौफ़ आंदाज पर
आखिर कब तक?
कब तक उसकी आजा़दी पर
"लड़की तेज है" का जुमला पहनाओगे ?
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