priyaanka mishra   ("स्मृतिशेष")
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Joined 10 February 2018


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31 MAR AT 21:28

मैं नींद को तो बुला लूँ अपने सिरहाने मगर
उस ख़्वाब को कहाँ रखूँ....जिसमें तुझे देखा है!

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24 MAR AT 23:55

किसी दिन पूछेंगे जो ग़र... मेरे महादेव
मैं कहूँगी....सच! तुमने अपना ही चाँद मुझे दे दिया🍁

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20 FEB AT 21:16

ये रातें...सब हाल जाने हैं
ज़हन में उठते हर सवाल जाने हैं

है चाँद की चमक में भला सोता कोई?
घर की नींव तो बस मकां जाने है!

ज़रा सी ठिठुरन में आग जलाते लोग
लकड़ी का जीवन तो बस मशाल जाने है!

तुम हर किसी से हँसकर मिलते हो दोस्त
पर हाल इस दिल का तो बस ख़ुदा...जाने है!

यूँ तो बारिशों में खेल कर बीता है बचपन
जवानी की नमी तो बस आँख जाने है!

मिलेंगे... कई उस्ताद  इस जहाँ में
पर जो ज़िन्दगी जीना सिखाये... वो कमाल जाने है!

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8 DEC 2024 AT 18:44

किताबें बोलता हुआ मौन हैं!

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30 JUN 2024 AT 0:33

*प्रकृति सम्भोग*
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भूमि की रिक्तताएँ
भरते मेघ
अपने स्वेद से
सींचते हैं भूमि
जिनसे तृप्त हो
करती है भूमि 'गर्भधारण'
प्रेम के बीजांकुर
प्रकृति की संततियों को
देतेें हैं जन्म...
संसार का सबसे सुंदर 'सम्भोग'
प्रकृति का है!
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12 FEB 2024 AT 20:28

तुम्हें दिए तो जा सकते थे बेहिसाब तोहफ़े
फ़क़त  मुझे वफ़ा का ही ख़याल आया!

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12 JAN 2024 AT 21:38

दिल को अच्छी लगने वाली चीज़ें अक्सर
मन से हार जाती हैं!

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22 NOV 2023 AT 23:16

यारों में बड़े हुए, यार कहते थे दोस्त
ऐब कमाई का भी होगा? कोई बताता क्यूँ नहीं!

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16 NOV 2023 AT 14:58

कभी कभी व्यक्ति बहुत बुरा बोल जाता है
और सामने वाले से यह अपेक्षा रखता है की वह उसे वैसा न ग्रहण करें, जैसा उसने कहा... उसका मतलब ये नहीं था!

किसी पशु को चाहे आप डंडे से मारे चाहे पत्थर से या किसी अन्य वस्तु से
इसमें 'किस से' आवश्यक यह बात है कि
आपका उद्देश्य उसे 'आहत' करने का ही था!

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20 OCT 2023 AT 1:22

'परिपक्वता'
ठोकरों का "शीर्ष" हैं!

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