तुम्हारी आंखों में अब,पानी क्यों नहीं है ?,
देखो,मेरे हाथ में कंकर,अभी भी थोङे बचे हुए है।-
"कंकर"
कुछ कह दिया कुछ बाकी रहा उम्र होने तक
शौक पूरे कहां होते हैं तसल्ली की नज़र होने तक
जाम अभी मिला नहीं कि सरूर पहले आ गया
ज़माने से रूठ जाते हैं पैमाने के असर होने तक
वो दूसरों से कहते रहे मत बताना और इधर
अफ़वाह को चिंगारी देते रहे ख़बर होने तक
दुनिया के लिए पत्थर मैं पहले भी था और आज भी हूं
मगर रोज़ हुनर को तराशता रहा संगमरमर होने तक
छेड़ देते हैं लोग अंदर की गहराई को कंकर मारकर
वरना रहता था अक्सर शांत सागर की लहर होने तक
'विवेक सुखीजा'-
मानों तो शंकर हूँ ना मानों तो कंकर हूँ,
वास्तव में तो मै बस नजरिए का अंतर हूँ।-
माटी- कंकर की लूट मची, ले गए पत्थर सब लूट।
आए हिस्से मेरे दिल, पीछे रह गए जो छूट।।-
थक कर बैठना नहीं है
हार कर रुकना नहीं है
राह में आने वाले छोटे-मोटे
कंकर,पत्थरों से डरना नहीं
आगे बढ़ते जाना है
रुकावटें कोई भी हो हौसलों को तोड़ नहीं सकती
बढ़ चुकें हैं गंतब्य की ओर
दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती
कोशिश करते जाना है...-
तुम हो सती ओ मेरी, प्रिये
मैं तो तुम्हारा भोला शंकर हूं
मुझको तुम्ही पूरन करती हो
तुम बिन अदना सा कंकर हूं।-
प्रकृति डूब जाए झील में तो,
आंखो से बहाके गंगा क्या करुं?
मुँह में उगने लगे बबूल के कांटे तो,
बसाके दिल में कमल का फूल क्या करुं?
मन तो छेड़ रहा है राग मल्हार,
मिले अधूरी नज़रों की सौगात तो क्या करुं?
चाह तो है एक मनचाहा फूल तोड़ने की,
बागबान कांटो से भरा निकले तो क्या करुं?
बोया तो है एक फूल दिल की मिट्टी में,
अब मिट्टी में ही निकले कंकर तो क्या करुं?
हिम्मत रखके कर तो दूं प्यार का इकरार,
अंत में वो किसी और का निकले तो क्या करुं?-
किसको पता है
कल क्या होगा यहाँ,
कंकर को रेत में बदलते
कहाँ देर लगती है।-
जिंदगी पानी के बुलबुले सी है। जैसे पानी मे बुलबुला उठता है और शांत हो जाता है। ठीक ऐसे ही जिंदगी है ।इंसान मैं और मेरे में रह जाता है । पल भर में शरीर से हवा निकल जाती है ।ज़िस्म से रूह आज़ाद हो जाती है ओर एक हल्की सी आवाज होती है जैसे पानी मे कंकर फैंकने से एक सी शाय की आवाज आती है और सब खत्म ।
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