कि मैं दूर हूँ दुनिया के रिवाजों से
मुझे जिंदा लोगों में शामिल न कर
ओर देख रहा है मेरा खुदा मुझे
तू मेरी फिक्र जता कर मुझ पर एहसान न कर
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माटी की है काया तेरी सोने चाँदी के सब सामान हैं,
घमंड है जिस देह का रब का तुझपे इक एहसान है।
जो वो चाहेगा न चाहकर भी करना पड़ेगा तुझे,
है मालूम तुझको फिर भी ना जाने क्यूँ तू हैरान है।।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)-
जुदाई के बाद भी अब वफ़ा करनी पड़ेगी
आने वाली हर नमाज़ कज़ा करनी पड़ेगी
मिलना बिछड़ना सब क़िस्मत का खेल है
फ़िर भी अब सबके लिए दुआ करनी पड़ेगी
लोग इस कद्र गुनाहों में डूबते जा रहे हैं अब
उनके संग मुझे भी अब इक ख़ता करनी पड़ेगी
लोग आते हैं और धोखा देकर चले जाते हैं
मुझे भी अब बे-वफ़ाई हर दफ़ा करनी पड़ेगी
ज़िन्दगी अब इक एहसान कर मुझपर ज़रा सा
वरना उसके लिए साँस भी फ़ना करनी पड़ेगी
तू तो जाहिल है पत्थर सा दिल है तिरा "आरिफ़"
अब तिरी नमाज़ भी मुझे ही अदा करनी पड़ेगी
इबादत है कोई "कोरे काग़ज़" की किताब नहीं
श़िद्दत के लिए ख़त्म अपनी अना करनी पड़ेगी-
काग़ज़ भी भूल जाता एहसान लिखते-लिखते
मिलती नहीं अगर इक पहचान लिखते-लिखते
अब इश्क़ को भी लिखना अंदाज़ बन गया है
हर लफ़्ज़ बन गया है मेहमान लिखते-लिखते
हर रोज़ पढ़ रहे हैं इसको भी अब दीवाने
शायर भी हो गए हैं नादान लिखते - लिखते
भीगा है कतरा-कतरा रोया है कतरा-कतरा
हँसना हुआ बहुत ही आसान लिखते-लिखते
सबकी ख़बर है इसको सबका पता ठिकाना
अब इसमें मिल गया है इंसान लिखते-लिखते
काग़ज़ हुआ है 'आरिफ़' हर लफ़्ज़ अब इबादत
सीखा है जब से इसने ईमान लिखते - लिखते-
एक काम करो न, तुम मुझे बदनाम करो न
जाते जाते मुझ पे, एक एहसान करो न
-© सचिन यादव-
रूठ जाऊँ गर मैं तो अब वो मुझे मनाता नही
एक पल भी उसे अब मेरा ख्याल आता नही
ख़ता इतनी सी थी कि मोहब्बत में हद से गुजर गए
वक्त बदला आज वो मुझे पहचान ने से मुकर गए
एहसान नही दिखावा नही बस तेरा प्यार चाहिए था
बाबू सोना नही मुझे अपनी जान माने वो यार चाहिए था
महज़ ये लफ्ज़ नही हैं अपने जज़्बात लिखती हूँ
इश्क़ ने कैसे कैसे बदले मेरे हालात लिखती हूँ-
अगर बैठे गिनने कम पड़ जाये ये जहान,
कम पड़े अगर साँसे बन जाए वो जान...!!
मित्र होता है अभिमान,
दिखाए सच्चा पथ होता है वो ज्ञान...!!
जो करे विपरीत इसके काम,
समझ त्याग तो उसको अन्जान,
मित्र नहीं वो है दीमक के समान..!!
सच्चा मित्र होता वही जो तुम्हारे लिए,
कभी बने दिवाकर कभी शीतल शाम...!!
मेरे पास हैं मित्र कुछ ऐसे महान,
पूरा होता उनसे जुड़ के मेरा नाम..!!
बस्ती है सबकी एक दूसरे में जान,
सब हैं एक दूसरे के लिए समान..!!
-©Saurabh Yadav...!!
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ए दोस्त मैं तेरा एहसान इस तरह से अदा करुगा,
तुम चाहे भूल जाना मैं तुम्हें हर वक्त याद करूंगा
दोस्ती से मैंने यही सीखा है खुद से पहले मैं मेरे
दोस्त के लिए दुआ करूंगा।
गुड नाइट मेरे प्यारे दोस्तों-
जलती धूप में छांव का मिल जाना
बिन मौसम बरसात हो जाना
अंधेरे में रोशनी का मिल जाना
सूखे तालाब में पानी भर जाना
ग़म को खुशियों का सहारा
भूलें को मंजिल मिल जाना
बिन एहसान के दोस्ती निभाना...
- Dsuyal
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