भारतीय साहित्य में पशु
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भावार्थक मुक्तक
कई होंगी समस्याएँ,,,,,,, कई दायित्व जीवन में
कई व्यवधान के होंगे,, सदा अस्तित्व जीवन में
मगर बैरी कोई, बाधा कोई,,,, तुझको न रोकेगा
अगर भगवान का ले नाम कर कर्तृत्व जीवन में।।-
"विकृतिः एवम ̖ प्रकृतिः" -ऋग्वेद
"What seems Un-natural is also natural."
So nothing is un-natural in this world.-
ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजां।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
🌺श्रीसूक्तं (ऋग्वेद)🌺-
🚩ॐ🚩
वेद:-ऋग्वेद। ऋषि:-मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता:-अग्नि।छंद:-गायत्री।
१)ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम् ॥१॥
हम अग्निदेव की स्तुती करते है (कैसे अग्निदेव?) जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढाने वाले ), देवता (अनुदान देनेवाले), ऋत्विज( समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करनेवाले ),होता (देवो का आवाहन करनेवाले) और याचको को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से ) विभूषित करने वाले है ।
वेद के प्रथम मंत्र में प्राकृतिक की शक्ति अग्नि की स्तुति की गई है। अग्नि की पूजा हर संस्कृति में की गई है। मानव ने प्रथम ऋचा रच कर अग्नि का आभार जताया है।-
आखिर उपनिषदों का उद्देश्य क्या
असतो मा सद् गमय | तमसो मा ज्योतिर्गमय||
सत्य की ख़ोज ब्रह्म की ख़ोज
हम कौन कहा से आये
सृष्टि को नियम पूर्वक चलाने वाले कौन
सूर्य चन्द्र नदी वायु आकाश
मनुष्य प्रकृति सबको संचालित
करने वाले कौन इन्ही सब
जिज्ञाओं को शांत करता है उपनिषद,
उपनिषदों की प्रामाणिक संख्या
एक सौ आठ हैं जो वेदों में वर्णित हैं
वेद सनातन धर्म में गहरा विश्वास
आत्मीयता का भाव पैदा करतें हुए,
जीवन के गूढ़तम रहस्यों का
ज्ञान देते हैं धन्यवाद 🙏🌹
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प्रतार्यायु: प्रतरं नवीय:||
अर्थात्-हम नवीन से नवीनतर और उत्कृष्ट से उत्कृष्टतर जीवन की ओर बढ़ते रहें||-
न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा:।
अर्थात्-जो श्रम नहीं करता,उसके साथ देवता मित्रता नहीं करते।-