Rainbowtales_1   (©अंशुमन🌈)
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Instagram : @rainbowtales_1
Joined 23 November 2019


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27 APR 2021 AT 22:28

कुदरत के उलट है मेरा अरमान कह दिया।
कभी बैगेरत मुझे कभी बेईमान कह दिया।

परवाज रोक ली गयी एक परिन्दे की और
बना नही उसके लिए आसमान कह दिया।

ये बीमारी है मर्द की एक मर्द से आशिकी
हकीम ने कौन-से कब ये बयान कह दिया।

स्याह करेंगे चेहरा वो काले दिलो वाले मेरा
चाहत को जिन्होंने मेरी अस्काम कह दिया

रेज़ा-रेज़ा हुआ दिल मोहब्बत में किसी की
और जमाने ने इश्क़ मेरा हराम कह दिया।

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21 NOV 2020 AT 21:39

Double tap if you are not straight 😉

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17 NOV 2020 AT 0:38


टूटते हुए तारे से जैसे
गलत है आस करना
हो जाने की परिपूर्ण
मन की अधूरी आकांक्षाओं के।

उसी तरह गलत सी है
संकीर्ण विचारों के समाज से
दो पुरुषो के प्रेम को
समझ पाने की उम्मीद।

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10 NOV 2020 AT 21:50

दिल को जला गया यूँ नज़रअंदाज करना तेरा
क्या इतना ही किरदार था तेरी कहानी में मेरा

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12 JUL 2021 AT 2:15

बस प्रेम को
प्रेम ना समझा गया

【अनुशीर्षक में】

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30 MAY 2021 AT 15:18

पुस्तक परिचय/समीक्षा - कुम्भक
【अनुशीर्षक में पढ़े】

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15 MAY 2021 AT 1:07

अगर तुम लौटते...!
【 अनुशीर्षक में 】

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9 MAY 2021 AT 23:55

अपराध देखा उन्होंने
अपनी संगिनी का माथा चूमती
किसी प्रेमिका की चिर व्यथा में।

चक्षुशूल था उनके लिए
अपने प्रेमी की भुजाओ में सिमटते
किसी पुरुष का निरीह आलिंगन।

उन्होंने कभी नही देखे
नीले अम्बर में बिखरते
इंद्रधनुषों के उज्ज्वल रंग।

अक्षम रहे देखने में वो
निरपराध भावो से भरे
प्रेम के सहस्त्रो रंग।

संभवतः वे पीड़ित थे
रंगांधत्व के रोग से।
उन्हें 'वर्णान्ध' कह दूँ
तो अतिशय न होगा।

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8 MAY 2021 AT 17:52

अपने ही किये वायदे तोड़ने को कहता है।
मुझसे इबादत अधूरी छोड़ने को कहता है।

मानता ही नही मिरी इक भी बात कभी
वो शख्स मुझसे उसे भूलने को कहता है।

मैं चाहता हूँ चलूँ थामकर हाथ जिंदगी भर
बीच रहगुज़र वो हाथ छोड़ने को कहता है।

वो जानता है कि उसके होने से पूरा हूँ मैं
रखके अधूरा मुझे मुँह मोड़ने को कहता है।

खबर नहीं मेरी चाहत की, शायद उसे तब ही
बोलकर ये बाते वो दम तोड़ने को कहता है।

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30 APR 2021 AT 1:13

तुम्हारे छोड़ जाने को मैंने
कभी तकदीर नही माना!
तुम्हारी महीनों की खामोशी
कितने ही बार मुझे तोड़ गयी!

कितनी ही कोशिशे मेरी
नाकामियाब रही लौटा लाने में तुम्हे।

मगर आज भी
बाँध रक्खा है दिल को मैंने
उम्मीद के अनगिनत धागों से।

सोचता हूँ कभी-कभी
तुम लौट आओगे एक रोज
मुस्कुराते हुए हमेशा की तरह.

और मैं चिढ़ जाऊँगा फिर से
तुम्हारे उस एक ही सवाल से
ढ़लती शाम को जब तुम
फ़ोन रिसीव करते ही पूछोगे

खाना खाया??

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