लूटी हुई छीनी हुई धोखे कपट धोखाधड़ी
से ली गई संपत्ति की बहुत गर्मी चर्बी होगी
पैसे की गर्मी बहुत होगी सौ डिग्री टेम्प्रेचर की होगी
पहले रिश्ते राख करेगी फिर मानवता शर्मसार करेगी
फिर सारे रिश्तों नातों को अपने ठेंगे पर रखेगी
जब कलियुग चरम पर होगा ये होगा
घमंड तो दुर्योधन सा बेशर्मी दुस्शासन सी
दानवी प्रवृत्ति कंस सी रा क्षसी प्र वृति
रावण हिरण्यकश्यप सी
कलियुगी नालायक बेटा औरंगजेब सा होंगा
बाप दो रोटी के लिए सारे ईमान गिरवी रख देगा
अंधा बाप अपनी ही इज्जत पर दाग़ लगायेंगा
बाप चारसौबीसी के कैदी हो गा
घटिया रिश्ते नाते मौन होकर तमाशाबीन होगे
जब कलियुग चरम पर होगा नीच नालायक
व्यभिचारी बेईमान मक्कार लोगो को भय देगे
डरपोक समाज पंगु बनकर कुछ नहीं कर पायेगा
और सरल सहज सरस पायस ठोकरें खायेगा
जब कलियुग चरम पर होगा ये होगा
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दर्द वेहिसाव है भाव लाजबाव है
बिकने वाले ने दर्द की कीमत तय की
खरीदने वाले ने किलोभाव का सौदा किया
खरीदने वाले किरदार अपने ही हिस्से थे
इंसानियत सरेराह किलो भाव पर बिकी
सबक सिखाने जिंदगी तैयार बैठी है
अब तुम्हारे ऊपर है की क्या भाव मे सीखेंगें-
मैंने तुमसे कब कहा की तुम्हे आना होगा
मैंने तुमसे कब कहा रिश्ते निभाना होगा
मैंने तुमसे कब कहा हवाओ के मुताबिक चलना होगा
मैंने तुमसे कब कहा मुझसे नाराज़ रहना होगा
मैंने तुमसे कब कहा अंधेरे में तीर चलाना होगा
मैंने तुमसे कब कहा कि वादा निभाना होगा-
रिश्तों में मिठास खत्म हुई
आत्मीयता की जगह बेरूखी हुईं
वक़्त के साथ सुविधाएं बढ़ी
बस अपनेपन की बातें कम हुई-
खुद से खुद का रिश्ता निभाया है सखी
जिंदगी ने जब जब शतरंज की बाजी हारी
दुराचारी अमानवीय लोगों से जीत जायेंगे
यह कहकर मन को बहुत मनाया है सखी
जब जब घुमावदार राहों से गुज़रे जीवन में
पांवों को संभलकर चलना है समझाया है सखी
हार के बाद जीत है यह कह हौसला न छोड़ा है सखी
जब कोई हंसने वाला अपना न हो फिर भी मुस्कुराया है सखी-
खुद से खुद का रिश्ता निभाया है सखी
जिंदगी ने जब जब शतरंज की बाजी हारी
दुराचारी अमानवीय लोगों से जीत जायेंगे
यह कहकर मन को बहुत मनाया है सखी
जब जब घुमावदार राहों से गुज़रे जीवन में
पांवों को संभलकर चलना है समझाया है सखी
हार के बाद जीत है यह कह हौसला न छोड़ा है सखी
जब कोई हंसने वाला अपना न हो फिर भी मुस्कुराया है सखी-
आप के चुप होने का इंतज़ार है
आप के बोलने का इंतज़ार है
शख्स दोनों है फ़र्क कुछ भी नहीं है
आप क्या बोल रहे हैं यह मायने रखता है-
नज़र और बद्दुआएं
सदैव अस्तित्व हीन है
अच्छे लोग देते नहीं
बुरे लोगों को लगती नहीं
इसलिए सभी जी रहे
अच्छे रो रहे बुरे हंस रहे-
संभाल कर रख दिया है यादों की गठरी
यादों की ही बनी है सखी ये ठठरी
बहुत मीठी थी मां के हाथों की मठरी
बांधकर सिरहाने रख लेना जिंदगी की गठरी
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