मोहब्बत से भला कोई कैसे ऊब सकता है,
यहां बात केवल तुझे डूबने से बचाने की थी...-
मेरे घर के पीछे से निकलता है
और ऑफिस के पीछे डूब जाता है
ये सूरज भी सुबह से शाम तक
मुझे देखते देखते ऊब जाता है-
आखिर कब तक तुम भी मेरे साथ रहते,
मैं भी तो कई दफे खुद से ऊब जाता हूं !!-
जितना मैं तुझसे दूर जा रहा हूं ,
उतना ही मैं खुद को करीब पा रहा हूं।।-
ज़रूर वो मोहब्बत से ऊबने लगा होगा
मैं जो मोहब्बत में डूबने लगी थी !!-
ऊब जाओ जब ज़िंदगी से तो थोड़ा आराम लो।
इस रफ़्तार भरे दिन में कुछ थमने का नाम लो।-
ग़म-ए-जिंदगी से उकता के
जीने से ऊब भी जाओगी,
जब करोगी मोहब्बत
इसमें डूब भी जाओगी,
अभी चाहत है तुम्हें तो साथ
चलने की ख़्वाहिश है मिरे,
गर जो मिला मुझसे बेहतर कोई
तुम मुझे भूल भी जाओगी-
मैं तैराक गहरे पानी का,आज साहिल में डूब गया !
जो हैं मेरे दिल के करीब,शख्स वही मुझसे लगता ऊब गया ।
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ये डूबना और ऊबना मोहब्बत की ज़हमत नहीं
वो तो सिर्फ एक छलावा था
जिसमें तू डूब गई और वो ऊब गया ...-
दुनिया तेरी दुनियादारी से ऊबने लगा हूं मैं
वो मुझे चांद कहती थी उसी में डूबने लगा हूं मैं
भटकते रहे उसकी तलाश में शहर-दर-शहर
हर आईने में उसका अक्स ढूंढ़ने लगा हूं मैं
हर जख्म को दवा मिले ये मुमकिन तो नहीं
नये दर्द से पुराने दर्द को बदलने लगा हूं मैं
जो बादल न बरसे तो धरती की क्या ख़ता
आजकल खुद से ही रूठने लगा हूं मैं
वो बिखरी है मुझमें बनके खुशबू के मानिंद
उसके ख्यालों में बसने लगा हूं मैं
ख्वाबों से मुश्किल होती है हकीकत
उससे जुड़कर फिर से टूटने लगा हूं मैं..
©abhishek trehan
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