खिन्नता कभी-कभी
किसी दूसरे से नहीं,
अपने आप से हो जाती है।।
ये मन उलझ-सा जाता है,
विचारों के अंर्तद्वंद्व में।।
ऐसा लगता है,
सबकुछ समझकर भी ये हृदय
अनजान बनना चाहता है,
इस दुनिया की हर वस्तु
( जीव और निर्जीव )
से दूर किसी एकांत स्थान में
आंतरिक शान्ति की तलाश में
निकल जाना चाहता है।।
जहाँ ना कोई प्रश्न करे,
और ना ही कोई उत्तर देना पड़े।।-
तेरे इस सादगी को देख कर ये उलझन है
कौन सा फूल चुनु तेरी बंदगी के लिए-
मैंने चाहा तब की बात,
वर्ना तुमने कब की बात!
याद तुम्हे बस आज का दिन,
भूल गई तुम तब की बात!
छीन के मुझसे मेरा दिल,
पूछे वो ये कब की बात!
फ़िर पंचायत बैठेगी तो,
होगी बेमतलब की बात!
अपनापन भी खो बैठोगे,
छोड़ो भी तकरार की बात!
दो पल की यह जिंदगानी,
कर लेते हम प्यार की बात!
_राज सोनी-
उलझ सी गई है ज़िन्दगी भी अब तो,
उलझे से रिश्तों को सुलझाने में ही।
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ज़िन्दगी तू थोड़ा सा इंतजार कर ले ,
खुद की भी बहुत सारी उलझने हैं!
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तेरी दास्तां-ए-हयात को लिखुँ किस गजल के नाम से
तेरी शौखियां भी अजीब है,तेरी सादगी भी कमाल है-
उलझनें अजीब हैं,
ना इस पार खुशी है,
ना उस पार खुशी है,
लोगों की भीड मे भी हम तन्हा से रहते हैं,
और तन्हाइयों मे भी हम खुश नही रहते।-
इक जद्दोजहद है खुद में खुद को ढूंँढ पाने की
एक उलझन तुझसे खुद को छिपाए रखना है !-
खुद से लड़ते-लड़ते अब थक सा गया हूं
दिन-ब-दिन मैं अपनी ज़िंदगी में बहुत उलझ सा रहा हूं।
आज कल तो होंठों पर झूठी मुस्कान लिए फिरता हूं
पता नहीं मैं इतनी घुटन-भरी दुनिया में ज़िंदा रह कैसे रहा हूं।-