जाने क्यूँ तरबतर हैं आँखे उनकी,
अभीतक नज़रभर देखा भी नहीं!
वो ताकती रहती चाँद को रातभर,
आँखों मे अक्स दिखाती भी नहीं!
पलट के देखती है गुजरते पास से,
वक़्त-ए-रूबरु पहचानती भी नहीं!
अब भी मैं नजरअंदाज हूँ ज़ालिम,
उस के दर से अभी उठा भी नहीं!
मुझे खोने का डर है उसके दिल मे,
जाहिर तौर से मेरी परवाह भी नहीं!
मेरे जाने से वो ख़फ़ा तो होगी बेशक,
पर वो रास्ता मेरा रोकती भी नहीं!
इल्म है मुझको, बेसब्र है वो मेरे लिए
"राज" को उसके बिना जीना भी नहीं! _राज सोनी-
अश्क़ों से, सदमों से, ज़ख़्मों से, अज़ाबों से मिलता है,
इल्म ज़िन्दगी का, कहाँ दो चार किताबों से मिलता है!
मुस्कान से, दुआओं से, मासूम किलकारी से मिलता है,
सकूँ दिल का, कहाँ दौलत के लगे अम्बारो से मिलता है!
दूरियों से, इंतजार से, मुलाकात की बेसब्री से मिलता है,
किसी के होने का एहसास कहाँ नज़दीकी से मिलता है!
ख़्वाबों से, आहट से, दस्तकों से, हिचकियों से मिलता है,
किसी के याद आने का सबब कहाँ कहने से मिलता है!
लाज से, शर्म-ओ-हया से, सुर्खी-ए-रुख़सार से मिलता है,
मुशायरा लूटने का अंदाज़ भला कहाँ ग़ज़ल से मिलता है!
बोसा से, आगोश से, बग़लगीर से, बाँहों में से मिलता है,
तसल्ली रूह को कहाँ जिस्मानी ताल्लुकात से मिलता है !
झुकी पलकों से, आँचल में लिपटी अंगुलियों से मिलता है _राज सोनी
कुबूल-ए-इकरार का अंदाज़ कहाँ अल्फाजों से मिलता है!-
पहली बार कब कैसे कहां मिले, यह मुझे कुछ याद नहीं,
बस, इतना ही इल्म है की रात बीती करवट बदल बदल के!-
इमरोज़, तेरी याद में इल्म बढ़ाया जाएं ।
तुम्हारे तहफ़्फ़ुज़ में,कुछ यगाना सा लिखा जाएं ।।
-Dr.Priya-
मैंनें लिखा है
अक्सर चाँद पर,
इल्म ना था चाँद ही
हिस्से आएगा !!
-
अजनबी थे, अजनबी से अजनबी रह गए।
रुख़सत हुए हमसे, अब तो मतलबी रह गए।।
इल्म नहीं उन्हें, हम बड़े शाकिर है, इश्क़ के।
अब कुछ नहीं तो, बस ग़लतफ़हमी रह गए।।-
इल्म भी जागीर है अब सिक्कों के खनको का,
हर किसी को यहाँ मोअल्लिम नसीब नही होता ।-
नहीं हुआ इल्म अब तलक कि, क्या है हासिल-ए-ज़िन्दगी
बस 'माँ' मुस्कुरा जाती है, ज़िन्दगी 'ज़िन्दगी' लग जाती है
- साकेत गर्ग 'सागा'-