टीस दिल में उठ रही है जिस मोहब्बत के लिए
उसने मेरा दिल दुखाया सिर्फ़ ग़फ़लत के लिए
इत्तिला कुछ मिल रही है तुम जो मुझसे दूर हो
धड़कने भी थम गईं अब इस शरारत के लिए
अम्न दिल का छीनकर तुम किस गली में हो छुपे
हर गली में दर-ब-दर दिल फिर अमानत के लिए
इश्क़ करने के लिए अब मुख़्तलिफ़ हैं रास्ते
और अब मैं क्या करूँ इसकी हिफ़ाज़त के लिए
हम-नवा को रोज़ 'आरिफ़' इश्क़ तुझसे चाहिए
इश्क़ कब तक यूँ रुके उसकी इजाज़त के लिए-
चला तू अपने हुस्न का जादू
चल जाए तो इत्तिला कर देना
होगी अगर शिद्दत तेरी चाहत में
तो मुझे मंज़ूर होगा तेरा हो जाना....-
ये घड़ा भरा गर कभी तो कर दूँगा तुम्हें इत्तिला
तुम हो इसी में मौजूद मगर दिल ख़ाली ख़ाली है-
जब जब गुज़रते है तेरे शहर से,
ना जाने कैसे
पर तुम्हें इत्तिला हो ही जाती है
हमारे आने की-
यूँही नहीं कोई कर लेता है हम पर हुक़ूमत,हम सभी मैं ही कुछ गलतियाँ होती हैं।
इत्तिला रहने की ज़रूरत होती है हर समय, क्योंकि गलतियाँ
यहाँ(समाज में) सभी से होती हैं।
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इत्तिला करो कि खुशियाँ जागीर नहीं होती...
मजबूरियों पर जो मुस्कुरा रहे हैं ना उनको...-
"कितना इंतज़ार करेगा तू उनका
ऐ दिल! अब वो लौट कर न आएंगे
मिल गया उनको साथ किसी और का
उसी के संग वो दुनियाँ अपनी सजायेंगे।"-
212 212 212
हैं कहाँ इत्तिला दीजिए
आप अपना पता दीजिए 1
इक ग़ज़ल नज़्र है आपको
इसपे कुछ तब्सिरा दीजिए 2
सब परेशाँ हुए हैं यहाँ
आएँगे कब बता दीजिए 3
देख के चेहरा वो आएगी
मुस्कुराहट सजा दीजिए 4
दिल से दिल तक पहुँच हम सकें
कोई तो रास्ता दीजिए 5
फिर ग़ज़ल गीत महफ़िल में हो
शम्अ आके जला दिजिए 6
वस्ल का वक़्त आये "रिया"
जल्द, ऐसी दुआ दीजिए 7-
अजनबी हो गया वो शख़्स फिर मुलाक़ात कैसी
तमाम भीड़ थी शहर में तेरे फ़िर क्या बात होती..-