हिज्र मनाते रहो, ईद का क्या है
चेहरा याद रखो, दीद का क्या है-
शौक मोहब्बत के एक दिन भर जाते हैं
दिल में रहने वाले दिल से उतर जाते हैं
वो जो तोड़ देते हैं मोहब्बत में हदें सारी
एक दिन फ़िर इश्क़ कर के मुकर जाते हैं
आसमाँ में कहाँ मिलता है आशियाँ उन्हें
परिंदे भी उतर के फ़िर ज़मीं पर आते हैं
पहचान होने में कहाँ वक़्त लगता है कभी
फ़िर अजनबी होने में अर्से गुज़र जाते हैं
नसीब वालों को तो महबूब मिल जाते हैं
वो जो टूटे दिल वाले हैं वो किधर जाते हैं
नागवार होती है जिनको मौजूदगी हमारी
वही रोज ख़्वाब में क्यूँ हर पहर आते हैं
चाहने से कहाँ मुकम्मल होता है कुछ सदा
फूल वो ले जाते हैं काँटे हमारे घर आते हैं
उम्मीदें दम तोड़ देती हैं सपने बिखर जाते हैं
मंज़िल यही होती है आगे रास्ते ठहर जाते हैं-
शिकवे शिकायतें नाराज़गियाँ, ये तो इश्क़ की रिवायतें हैं
जुबाँ पर लफ्ज़ चाहे जो भी हों, दिलों में तो बस चाहतें हैं-
आज आख़िरी बार जाते हुए उसने मुड़ कर भी ना देखा
कभी गली के मोड़ पर जो घंटों इंतज़ार किया करता था-
मिला फ़िर भी ना मिला, ये मलाल कहाँ जाएगा
मिलेगा ख़्वाब में ही कहीं, विसाल कहाँ जाएगा
रात अब कितनी गहरी होगी, उजाल कहाँ जाएगा
हर दिन भारी हुआ मुझ पर, ये साल कहाँ जाएगा
महफ़िलों में शोर होंगे बहुत, ख़्याल कहाँ जाएगा
ख़लिश ख़ल्वत में होगी, सुकूँ मुहाल कहाँ जाएगा
बिन छुए यूँ नफ़स में उतरना, कमाल कहाँ जाएगा
मिटा देना वज़ूद फ़िर, हुनर बेमिसाल कहाँ जाएगा
ताल्लुक़ात तो तोड़ दोगे तुम, जाल कहाँ जाएगा
महसूस होगा तुम्हें भी, इश्क़ मजाल कहाँ जाएगा
सियाह रातों में जलेंगे दोनों, ज़वाल कहाँ जाएगा
बड़ा पक्का था रंग मेरा, इस खाल कहाँ जाएगा
वाकिफ़ हूँ वो मेरा नहीं, एहतिमाल कहाँ जाएगा
आख़िर मैं उसका क्यूँ हुआ, ये सवाल कहाँ जाएगा
कश्मकश रात होगी, दिन का हाल कहाँ जाएगा
मोहब्बत अगर पूरी हो जाए, मिसाल कहाँ जाएगा-
ये वक़्त भी तुम जैसा ही तो है, कहाँ साथ रहने वाला है
एक दिन गुज़र ही जाएगा, छोड़ जाएगा पीछे सब कुछ
कुछ ना होगा बस अतीत के कुछ पन्ने बिखरे रह जाएंगे
जिनमें दफ़्न रह जाएंगी कही-अनकही भूली बिसरी यादें
और सामने बस आज होगा, बेबस, लाचार, हारा हुआ
फिर ना कोई टीस उठेगी, ना कोई आह सुनने वाला होगा
बोझिल आँखें टूटे सपनों का बोझ कहाँ संभाल पाएँगी
मग़र रुकने, थकने, बैठने के लिए भी वक़्त कहाँ होगा
सुबह होगी, शामें ढलेंगीं, उम्र यूँ ही तमाम होती जाएगी
और कुछ कहाँ बचेगा तब, बस इतनी कहानी रह जाएगी
फ़िर मौत की दहलीज़ पर दम तोड़ देगी, ये ज़िन्दगानी-
ना कोई ग़म है ज़िन्दगी में, ना कोई तन्हाई है
बस एक अजीब सा दर्द है, जिसमें गहराई है-
बिखर गई फ़ज़ा सुबह की, मुसाफ़िर ने शबिस्ताँ छोड़ दिया
एक जो रिश्ता बचा था ख़्वाब भर का, उसे भी तोड़ दिया-
तर्क-ए-तअल्लुक़ात भला कहाँ हमें गवारा था
आरज़ू-ए-विसाल टूटी पर कहाँ दिल हारा था
ख़याल-ए-यार बाकी अब कहाँ कोई सहारा था
मुड़ तो हम भी जाते पर कहाँ उसने पुकारा था
ख़ैर शिकवा शिकायतों से कहाँ अब गुज़ारा था
आख़िर उसे तो जाना ही था कहाँ वो हमारा था-
रेत की तरह हथेलियों से फिसल जाती है
मोहब्बत शाम है एक दिन ढल जाती है-