दिल में रह कर जख्म दे जाते हैं
जीते -जी कफ़न दे जाते हैं
ऐसे लोगो से कोसो दूर रहे जो
आस्तीन के सांप बन कर मरहम
दे जाते हैं-
-:एक मतला, एक शेर:-
दिख जाते है वो, जो जमीन में रहते हैं
मेरे चाहने वाले आधे, आस्तीन में रहते हैं
कोई राज़ बताकर , जब मैं सो जाता हूं
बाहों से जेबों तक, छान बीन में रहते हैं-
कह दो उन्हें कि हमें उनकी ज़रूरत नहीं,
आस्तीन का सांप पालना छोड़ दिया हमने।-
फ़ालतू की नहीं,आज पालतू की बात करते है,
क्या आपने भी कभी आस्तीन के सांप पाले थे?-
बुजुर्गों से मिली विरासत को संभाल रखा हूं
खुद अपनी जान को मुश्किल में डाल रखा हूं
पता है की बना लेंगे मुझे भी निशाना किसी दिन
फिर भी कुछ सांपों को आस्तीन में पाल रखा हूं-
सांप के फन को पैरो तले कुचल दू वो फनकार हूं मै
आस्तीन के सांपों को इशारों में नचा दू वो झनकार हूं मै-
तो सभी अपने हैं पर जब जरूरत पड़ती
हैं, तो कोई अपना नहीं दिखाई देता हैं।
सब सिर्फ अपने स्वार्थ और जरूरत के
हिसाब से अपनेपन का दिखावा करते हैं।
हमारे विश्वास के साथ खेलते हैं।
वही अपने हमें आस्तिन के साँप कि
तरह डस कर कही का नहीं छोड़ते।
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अब इन हक़ीक़त के साँपों में दम कहा है,
डसने का काम कुछ जहरीले लोग कर रहे है,
और आप तो खामखां इन साँपो से डरते है,
लोग साँपो से नहीं, जहरीले लोगो से मर रहे है।-
फन कुचलने का हुनर सिखिये जनाब
आस्तीन में साँपों की तादाद बढ़ रही है-
दिल में ज़हर रखते हैं
लब शहद के प्यालें है
जाने कितने आस्तीन में साँप
इस धरा ने पाले हैं ।-