Aafia Khan   (Aafia Khan)
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Joined 21 January 2019


Joined 21 January 2019
4 FEB AT 13:40

આમ તો સહી ગયા અમે પણ ઘણું બધું "આફિયા",
પણ તારું આ હદે બદલાઈ જવું ચર્ચા નો વિષય છે.

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3 FEB AT 17:12

मेरा कमरा
(Read in caption)

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27 APR 2022 AT 19:41

हसीन मुस्तक़बिल से जुड़े कुछ ख़्वाब भेजे है,
उन्होंने सालगिरह के तोहफ़े में गुलाब भेजे है।

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25 APR 2022 AT 12:17

और कितने खुले इशारे चाहिए तुम्हें 'आफिया',
तुम्हारा तोहफ़ा उसने आज भी संभाल रखा है।

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25 APR 2022 AT 12:06

"शायद"

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6 MAR 2022 AT 16:52

तो,
ये होता और वो होता।
कितना सोच रखा था,
होता तो अच्छा होता।

ग़लत-फ़हमी ना होती,
ना कोई मलाल होता।
सुकून-ए-क़ल्ब अगर,
होता तो अच्छा होता।

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5 MAR 2022 AT 12:36

पहचान ना पाए अपना वजूद हमारे सुख़न में,
और हम तुम्हें खामखां आक़िल समझ रहे थे।

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4 MAR 2022 AT 15:42

अगर जाना ही चाहता है तो फिर दफ़ा करो,
'आफिया' ज़िंदा इंसान को रोना बुरा होता है।

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4 MAR 2022 AT 12:19

चाहें जाने का एहसास तुम्हें मग़रूर ना कर दे,
'आफिया' उनसे केह दो हम दोस्त ही अच्छे है।

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3 MAR 2022 AT 18:21

तुझे खोना भी नहीं चाहते,तेरा होना भी नहीं चाहते,
दफ़न कर के कुछ ख्वाइशों को रोना भी नहीं चाहते।

ख़्वाबों का जहान छोटा सही मगर सिर्फ अपना हो,
लबरेज़ हो गैरों से दिल का वो कोना भी नहीं चाहते।

सुना है बुरा सुलूक होता है आखिर में तोहफों के साथ,
तेरे दिए हुए रुमाल को अश्कों से धोना भी नहीं चाहते।

मेहबूब कहो या सितमगर कहो जो भी मर्ज़ी तुम्हारी,
उड़ाकर नींद तुम्हारी सुकून से सोना भी नहीं चाहते।

बचकाना हरकतों और नादानियों से भरे पड़े है लेकिन,
वक्ती तौर पे दिल बेहलाए वो खिलौना भी नहीं चाहते।

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